रिद्धि और सिद्धि दो बहने बस ३ और १ साल की थी जब उनकी माँ गुजर गई. रिद्धि के पापा ने बच्चों की छोटी उम्र के चलते सबके कहने पर दूसरी शादी कर ली. पर जैसा कि हमेशा होता है नई माँ दोनों बहनो के साथ अच्छा बर्ताव नहीं करती थी. सिद्धि तो छोटी थी इसलिए उसे कम समझ आता था नई माँ का पराया बर्ताव पर रिद्धि में इतनी समझ थी कि वो नई माँ की अजीब बोली और कड़वे जवाबो से दुखी हो जाए. रिद्धि के पापा अपनी बेटियों से प्यार तो करते थे पर नई माँ की तरफ भी उनका झुकाव हो गया था. इसलिए वो कभी कभी ही नई माँ के गलत बर्ताव पर उन्हें टोकते थे. रिद्धि अपनी छोटी बहन के साथ बस अपनी दुनिया सही करने में लगी रहती थी.
रिद्धि के पापा को किताबो का बड़ा शौक था. उनके घर में दर्जनों किताबे थी अलग अलग हिंदी लेखकों की. रिद्धि के पापा किताबो के साथ ही अपनी पहली पत्नी के जाने का दुःख भुलाते रहते थे. जब भी खाली समय होता, उनके साथ में कोई ना कोई किताब होती. नई माँ को कभी कभी चिढ़ भी होती रिद्धि के पापा के किताबो को ज्यादा तवज्जो देने से. पर रिद्धि के पापा को उनकी बातो का कुछ फरक ना पड़ता, उन्होंने किताबो को ही दोस्त बना लिया था. और यही वजह थी कि जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते है, रिद्धि के पास सिर्फ किताबे थी. नंदन, चम्पक, बाल हंस जैसी कई सारी. शुरू में तो रिद्धि के पापा ही उसके लिए किताबो में लिखी कहानियाँ पढ़ते थे पर धीरे धीरे जैसे रिद्धि ने स्कूल में पढ़ना सीखा, वो खुद से किताबे पढ़ने लगी. ४ साल की रिद्धि स्कूल से आकर सीधे कहानियों में लग जाती थी. छोटी थी इसलिए उसे समय लगता था कहानियाँ पढ़ने में. १० साल की होते होते रिद्धि पूरी तरह से उन कहानी की किताबो में खो गई. रिद्धि के पापा भी एक के बाद एक किताबे लाते रहते उसके कहने पर.
बच्चों की किताबें अलग होती है. वो हमेशा सकारात्मक और प्रेरणादाई होती है. उनमे किसी कहानी का दुखद अंत नहीं होता. वो बच्चों को हमेशा आगे बढ़ना और कठिनाइयों का हिम्मत से सामना करना सिखाती है. रिद्धि के साथ भी उन कहानियो ने ऐसा ही किया. कहानियाँ उसे हौसला देने लगी जब भी वो दुखी होती. जब भी नई माँ कुछ जली-कटी सुनाती, वो पहले से पढ़ी हुई किसी कहानी का कोई किरदार बन जाती अपने आप में. वो किरदार उसे हिम्मत देते, सहारा देते. जल्द ही सब ठीक हो जाता.कभी कभी वो खुद से बात भी करती कहानी के अलग अलग किरदार बन कर. उसका सारा अकेलापन इस तरह खत्म हो जाता. जहाँ सिद्धि उसे खेलने के लिए बुलाती रहती, रिद्धि अपनी किताबो में डूबी बहानो पर बहाने बनाती रहती. किताबे ही उसकी माँ भी बन गई और हर एक अच्छी और सकारात्मक कहानी के बाद रिद्धि की हिम्मत और बढ़ जाती.
फिर एक ऐसा समय आया जब रिद्धि वो किताबे भी पढ़ने लगी जिनको पढ़ने की मनाही थी. वो अपने पापा की किताबे भी चुपके से पढ़ने लगी, जो पापा लाइब्रेरी से अपने लिए लाया करते थे. प्रेमचंद, शरतचंद, धर्मवीर भारती और भी तमाम लेखक. वो किताबें रिद्धि की उम्र से बहुत ऊपर की थीं इसलिए उनमें लिखी बातें कभी समझ में आती तो कभी ऊपर से निकल जातीं उसके. लेकिन उनमें एक तिलस्म था, एक अलग तरह का जादू जो बच्चोंं की कहानियों से बहुत गहरा था.
वो रात-रात भर जागकर किताबें पढ़ा करती. उस सब किताबों में परिवार, समाज और रिश्तों की वो जटिलताएं थीं, जो उसके बाल-मन को उलझाकर रख देतीं थीं. वो सच्चाई के ज्यादा करीब की किताबे थी. कई बार उन किताबो की कोई कहानी रिद्धि को अपने जीवन की कहानी लगती. तब से उसने अपनी हर परेशानी को किताब का एक पन्ना मानकर देखना शुरू कर दिया. वो सोचती कि अगर जीवन में ये समस्या है तो इसका होना भी ज़रूरी है. ये ना होगी तो कहानी उतनी दिलचस्प नहीं होगी. रिद्धि अब थोड़ा और समझदार हो चुकी थी. अपने जीवन की समस्याए उसे उस किताब का हिस्सा लगने लगी जिसमे वो मुख्य किरदार थी. उसे चीजों का फरक पढ़ना और भी बंद हो गया. हां एक बदलवा जरूर हो गया था अब.
जब वो बच्चों की किताबे पढ़ती थी तो वो किताबे उसे हमेशा सकारात्मक रखती. हिम्मत देती कि अंत में सब ठीक हो जाता है. पर उन पापा की किताबो ने उसे एक बार फिर से बदल दिया था. उसका जीवन को देखने का नजरिया बदल गया था. उसको समय से पहले समझ आ गया था कि कभी कभी जीवन एक कड़वी सच्ची होती है जिसे जीना ही होता है. हर किसी का जीवन बच्चों की किताबो के जैसे रंग बिरंगा या फिर हमेशा सीख देने वाला नहीं होता. किसी किसी के हिस्से में निराशा, दर्द, हताशा, क्रोध और हिंसा भी होते है.
२० सालो के बाद अब रिद्धि एक जानी मानी लेखिका है. हज़ारो किताबें पढ़ चुकी है और खुद भी किताबें लिखने लगी है. वो कभी कभी सोचती है कि शायद इतनी जल्दी उसे वो किताबें नहीं पढ़नी चाहिए थीं जो बच्चोंं के लिए नहीं लिखी गई थीं. उतनी जल्दी उसे दुनिया की पेचीदगी का पता नहीं चलना चाहिए था. शायद उसे कुछ और वक्त मिलना चाहिए था दुनिया को एक बच्चे की कच्ची निगाह से देखने को. पर फिर उसे ये भी लगता है कि शायद उसके लिए वही ठीक था, उसकी कहानी को ऐसे ही ढलना था. उसके जीवन की किताब ऐसे ही लिखी जानी थी.
पहले प्रकाशित यहाँ (https://www.mycity4kids.com/parenting/cooperation-communication-and-affection-thee-keys-of-parenting/article/bacco-ki-kitabo-me-n-duniya-alaga-hoti-hai)
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रिद्धि के पापा को किताबो का बड़ा शौक था. उनके घर में दर्जनों किताबे थी अलग अलग हिंदी लेखकों की. रिद्धि के पापा किताबो के साथ ही अपनी पहली पत्नी के जाने का दुःख भुलाते रहते थे. जब भी खाली समय होता, उनके साथ में कोई ना कोई किताब होती. नई माँ को कभी कभी चिढ़ भी होती रिद्धि के पापा के किताबो को ज्यादा तवज्जो देने से. पर रिद्धि के पापा को उनकी बातो का कुछ फरक ना पड़ता, उन्होंने किताबो को ही दोस्त बना लिया था. और यही वजह थी कि जिस उम्र में बच्चे खिलौनों से खेलते है, रिद्धि के पास सिर्फ किताबे थी. नंदन, चम्पक, बाल हंस जैसी कई सारी. शुरू में तो रिद्धि के पापा ही उसके लिए किताबो में लिखी कहानियाँ पढ़ते थे पर धीरे धीरे जैसे रिद्धि ने स्कूल में पढ़ना सीखा, वो खुद से किताबे पढ़ने लगी. ४ साल की रिद्धि स्कूल से आकर सीधे कहानियों में लग जाती थी. छोटी थी इसलिए उसे समय लगता था कहानियाँ पढ़ने में. १० साल की होते होते रिद्धि पूरी तरह से उन कहानी की किताबो में खो गई. रिद्धि के पापा भी एक के बाद एक किताबे लाते रहते उसके कहने पर.
बच्चों की किताबें अलग होती है. वो हमेशा सकारात्मक और प्रेरणादाई होती है. उनमे किसी कहानी का दुखद अंत नहीं होता. वो बच्चों को हमेशा आगे बढ़ना और कठिनाइयों का हिम्मत से सामना करना सिखाती है. रिद्धि के साथ भी उन कहानियो ने ऐसा ही किया. कहानियाँ उसे हौसला देने लगी जब भी वो दुखी होती. जब भी नई माँ कुछ जली-कटी सुनाती, वो पहले से पढ़ी हुई किसी कहानी का कोई किरदार बन जाती अपने आप में. वो किरदार उसे हिम्मत देते, सहारा देते. जल्द ही सब ठीक हो जाता.कभी कभी वो खुद से बात भी करती कहानी के अलग अलग किरदार बन कर. उसका सारा अकेलापन इस तरह खत्म हो जाता. जहाँ सिद्धि उसे खेलने के लिए बुलाती रहती, रिद्धि अपनी किताबो में डूबी बहानो पर बहाने बनाती रहती. किताबे ही उसकी माँ भी बन गई और हर एक अच्छी और सकारात्मक कहानी के बाद रिद्धि की हिम्मत और बढ़ जाती.
फिर एक ऐसा समय आया जब रिद्धि वो किताबे भी पढ़ने लगी जिनको पढ़ने की मनाही थी. वो अपने पापा की किताबे भी चुपके से पढ़ने लगी, जो पापा लाइब्रेरी से अपने लिए लाया करते थे. प्रेमचंद, शरतचंद, धर्मवीर भारती और भी तमाम लेखक. वो किताबें रिद्धि की उम्र से बहुत ऊपर की थीं इसलिए उनमें लिखी बातें कभी समझ में आती तो कभी ऊपर से निकल जातीं उसके. लेकिन उनमें एक तिलस्म था, एक अलग तरह का जादू जो बच्चोंं की कहानियों से बहुत गहरा था.
वो रात-रात भर जागकर किताबें पढ़ा करती. उस सब किताबों में परिवार, समाज और रिश्तों की वो जटिलताएं थीं, जो उसके बाल-मन को उलझाकर रख देतीं थीं. वो सच्चाई के ज्यादा करीब की किताबे थी. कई बार उन किताबो की कोई कहानी रिद्धि को अपने जीवन की कहानी लगती. तब से उसने अपनी हर परेशानी को किताब का एक पन्ना मानकर देखना शुरू कर दिया. वो सोचती कि अगर जीवन में ये समस्या है तो इसका होना भी ज़रूरी है. ये ना होगी तो कहानी उतनी दिलचस्प नहीं होगी. रिद्धि अब थोड़ा और समझदार हो चुकी थी. अपने जीवन की समस्याए उसे उस किताब का हिस्सा लगने लगी जिसमे वो मुख्य किरदार थी. उसे चीजों का फरक पढ़ना और भी बंद हो गया. हां एक बदलवा जरूर हो गया था अब.
जब वो बच्चों की किताबे पढ़ती थी तो वो किताबे उसे हमेशा सकारात्मक रखती. हिम्मत देती कि अंत में सब ठीक हो जाता है. पर उन पापा की किताबो ने उसे एक बार फिर से बदल दिया था. उसका जीवन को देखने का नजरिया बदल गया था. उसको समय से पहले समझ आ गया था कि कभी कभी जीवन एक कड़वी सच्ची होती है जिसे जीना ही होता है. हर किसी का जीवन बच्चों की किताबो के जैसे रंग बिरंगा या फिर हमेशा सीख देने वाला नहीं होता. किसी किसी के हिस्से में निराशा, दर्द, हताशा, क्रोध और हिंसा भी होते है.
२० सालो के बाद अब रिद्धि एक जानी मानी लेखिका है. हज़ारो किताबें पढ़ चुकी है और खुद भी किताबें लिखने लगी है. वो कभी कभी सोचती है कि शायद इतनी जल्दी उसे वो किताबें नहीं पढ़नी चाहिए थीं जो बच्चोंं के लिए नहीं लिखी गई थीं. उतनी जल्दी उसे दुनिया की पेचीदगी का पता नहीं चलना चाहिए था. शायद उसे कुछ और वक्त मिलना चाहिए था दुनिया को एक बच्चे की कच्ची निगाह से देखने को. पर फिर उसे ये भी लगता है कि शायद उसके लिए वही ठीक था, उसकी कहानी को ऐसे ही ढलना था. उसके जीवन की किताब ऐसे ही लिखी जानी थी.
पहले प्रकाशित यहाँ (https://www.mycity4kids.com/parenting/cooperation-communication-and-affection-thee-keys-of-parenting/article/bacco-ki-kitabo-me-n-duniya-alaga-hoti-hai)
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