मैं एक स्त्री हूँ और स्त्रियों का मनोविज्ञान तारीफ को बड़ा महत्व देता है. तारीफ हम महिलाओं के लिए मशीन में तेल सा काम करती है. जैसे तेल डालने से पुर्जे ज्यादा अच्छे से लम्बे समय तक काम करते है. वैसे ही हम महिलाओं के लिए तारीफ एक प्रोत्साहन की तरह होती है. हमे अच्छा महसूस करवाती है. हमे अपनी जरूरत का अहसास दिलाती है. बस एक चुटकी तारीफ बड़े बड़े काम कर सकती है. सिर्फ एक चुटकी तारीफ हमे जीत का अनुभव करा सकती है. और यही मैं अपने पतिदेव को समझना चाहती हूँ. महिलाओं को अगर समय-समय पर तारीफ मिलती रहे तो वो ज्यादा खुश रहती है और घर की लक्ष्मी खुश तो परिवार खुश, ये तो सब मानते ही है.
कल ही की बात है. मैंने मटर की कचोरियाँ बनाई शाम को. पहली बार बनाई थी तो शबरी के जैसे पहले ही चख कर देख ली कि कैसी बनी है. खाते ही अंदाजा लग गया कि अच्छी बनी है. नमक एकदम ठीक था. मसाले एकदम उचित थे. और स्वाद भरपूर था. मुझे मन ही मन बड़ी ख़ुशी हुई कि चलो मेहनत सफल रही. पतिदेव बाहर से जैसे ही आए मैंने उन्हें बताया कि आज कचोरियाँ है खाने में. उन्होंने कोई खास उत्साह नहीं दिखाया तो मैंने खुद से ही कहा कि मैं बना रही हूँ गरम गरम खा लो. वो राज़ी भी हो गए फिर. मैंने प्लेट में रख कर कुरकुरी कचोरियाँ उन्हें खाने को दे दी. टीवी पर बिग बॉस चल रहा था और मैं किचन में खड़ी तारीफ आने का इंतज़ार कर रही थी.
जब कुछ देर तक माहौल में शांति रही तो मैंने खुद ही जाकर पतिदेव से पूछा कि "कचोरियाँ कैसी बनी है?" उन्होंने सूखा सा जवाब दिया "ठीक है.." फिर मुझसे रहा नहीं गया..मैंने भी बोलना शुरू किया " इतनी अच्छी कचोरियाँ बनाई है मैंने और आप बस अच्छी बोल रहे हो.." पतिदेव हँस दिए. बोले "तुम खाने दो ठीक से फिर तो बोलता कैसी बनी है कचौरिया.." मन ही मन मैंने सोचा स्वाद तो २-४ कौर के बाद ही पता चल जाता है खाने का. तारीफ क्या कोई पूरा खाने के बाद करता है?
इसे मेरे पतिदेव का स्वभाव कहे या आदत, वो कभी तारीफ नहीं करते. पीठ पीछे चाहे करते हो पर मेरे सामने तो मेरी तारीफ कभी नहीं की. अब तो ये हाल हो गया है कि जब वो नहीं करते तारीफ तो मैं खुद की तारीफ खुद से कर लेती हूँ. जैसे "वाह, क्या छोले बनाये है मैंने.." या फिर ""वाह.. क्या बढ़िया पेंटिंग बनाई मैंने.." पर मन तो अपनी तारीफ किसी और से सुनना पसंद करता है.
एक बार कही पढ़ा था कि पुरुषों के लिए तारीफ करना थोड़ा पेचीदा होता है. पुरुषों का मनोविज्ञान जरा दूसरी तरह से देखता है तारीफ को. उन्हें लगता है कि लॉजिकल तारीफ ही सही होती है. लॉजिकल मतलब, जैसे कोई एवरेस्ट पर चढ़ जाए तो उसकी तारीफ करेंगे. पर वही पत्नी के खाने की तारीफ उन्हें समझ नहीं आती.
महिलायें अलग होती है तारीफ के मामले में. वो तारीफ को एक दो लाइन की बातचीत ना मान कर, एक कला समझती है. हम महिलायें भावनापूर्ण होती है और छोटी से छोटी चीज की तारीफ में विश्वास करती है.
तुर्की के एक फोटोग्राफर मेहमत ग्यांजे ने अपने अनुभवों में एक बार लिखा था कि एक चुटकी तारीफ महिलाओँ के लिए जादू सा काम करती है. जनवरी २०१५ में वो मेक्सिको के सैन क्रिस्तोबल डि लास कैसस इलाक़े में एक महिला की तस्वीरें लेते हुए उसे कैमरे पर सहज महसूस कराने की कोशिश कर रहे थे. जब वह महिला तमाम कोशिशों के बाद भी नहीं मुस्कुराई तो उन्होंने उस महिला की ख़ूबसूरती की तारीफ़ शुरू कर दी. इससे वह महिला मुस्कुरा उठी. अक्टूबर २०१७ तक वह महिलाओं की उनकी प्रशंसा से ठीक पहले और बाद की तस्वीरें लेते रहे. महिल को उनकी ख़ूबसूरती की तारीफ सुनना भी पसंद होता है. ये उनके आत्म विश्वास को बढ़ाता है.
दूसरे, शादीशुदा महिलाओ के लिए ख़ूबसूरती की तारीफ और भी मायने रखती है. उन्हें लगता है वो अब भी अपने पति को उनकी तरफ प्यार से देखने के लिए मज़बूर कर सकती है. पर ये हर महिला के अपने व्यक्तित्व पर भी निर्भर करता है. किसी को ख़ूबसूरती से मतलब होता है और किसी को नहीं. पर ज्यादातर को ख़ूबसूरती की तारीफ अच्छी लगती है और मैं भी उन्ही में से हूँ. पर इसका मतलब ये नहीं कि महिलायें सिर्फ ख़ूबसूरती की तारीफ पसंद करती है. उन्हें अपने कौशल, गुणों और योग्यता की तारीफ भी पसंद होती है. और वो अपनी योग्यता की तारीफ से ज्यादा समय तक खुश रहती है.
तारीफ के बारे में लिखते-लिखते एक लाइन मेरे दिमाग में घूम रही है "एक चुटकी तारीफ की कीमत तुम क्या जानो, त्रिवेदी जी.." ये मेरे पतिदेव के लिए थी.
आपका क्या अनुभव है तारीफ को लेकर? क्या आपके पतिदेव तारीफ करने में विश्वास करते है? बताएगा जरूर..
पहले प्रकाशित यहां (https://www.mycity4kids.com/parenting/cooperation-communication-and-affection-thee-keys-of-parenting/article/eka-cutaki-taripha-ki-kimata-tuma-kya-jano)
Comments
Post a Comment