जहा देखो वही एक बात की चर्चा है आजकल दिल्ली के गली मोहल्लो में.. "इस बार पटाखे नहीं जला पाएगे.." 9 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी. इसके पहले पिछली बार भी कोर्ट ने दिल्ली को प्रदूषण से बचाने के लिए ऐसी ही पाबंदी लगा दी थी. दिल्ली की हवा वैसे भी जहरीली हो चुकी है लेकिन हर साल दिवाली के बाद दिल्ली की हवा की हालात बद से बदतर हो जाती है. पिछले साल तो खुद सरकार ने माना था कि पूरा दिल्ली शहर एक गैस चैंबर में बदल चुका है. पर लोग है कि पटाखों का मोह छोड़ ही नहीं पा रहे.. और आज के समाज में लोगो के भले की बात करना भी गुनाह है. जैसे ही पटाखों पर बन लगा लोग इसे दिवाली ख़त्म होना कहने लगे. सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ इधर पाबंदी की घोषणा की तो दूसरी तरफ लोगों के अंदर का हिंदू जाग उठा और इसे धार्मिक रंग देने लगे. लोग कहने लगे कि ये हिंदू संस्कृति पर हमला है. जरा ध्यान दीजिये क्या क्या कह गए लोग..
"आखिर कोई हमें हमारा ही त्योहार मनाने से कैसे रोक सकता है? यही तुमने होली के समय किया, हमसे ये कहकर पानी छीन लिया कि इस त्योहार में पानी की बहुत बर्बादी होती है.अब दिवाली पर पटाखे भी ? पर बकरीद के बारे में कोई कुछ क्यों नहीं कहता? जब लाखों मासूम जानवरों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. क्रिसमस के बारे में क्या कहेंगे जब हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं? "
मैं भी हिन्दू परिवार से हूँ और जहा तक मेरा २५ सालो का ज्ञान कहना है दिवाली रौशनी का त्यौहार है. दिए जलाने और सब तरह का अंधियार खत्म करने का पर्व है. ये पटाखे कहा से आ गए हिन्दू सभ्यता में..? उत्तर भारत में माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों ने पूरे मार्ग को दिए जलाकर रौशन कर दिया था. ये दिए अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक के रूप में जलाए गए थे. अंधेर पर उजाले की जीत के रूप में जलाए गए थे. और यही हम आज तक कर रहे है दिवाली मना कर. और भी बड़ी सारी कहानिया है दिवाली मानाने के पीछे पर पटाखे कही भी सीन में नहीं है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखे पर लगी पाबंदी से आहत एक वर्ग कह रहा है कि यह हिंदू भावनाओं का अपमान है.
अब मैं उन लोगो के ज्ञान चक्छु खोलना चाहती हूँ जो पटाखों को हिन्दू सभ्यता बता रहे है. पटाखे जलाना भारत की परंपरा कभी थी ही नहीं. पटाखों का आविष्कार सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था. इसके बाद तक 1200 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक ये पूरे विश्व में लोगों की पसंद बन गए. 2014 तक भारत में चीन के बने पटाखे भारी मात्रा में आयात किए जाते थे. ये पटाखे सस्ते होते थे और इनमें पोटाशियम क्लोरेट भारी मात्रा में होता था. पोटाशियम क्लोरेट एक ज्वलनशील पदार्थ है जो तुरंत आग पकड़ लेता है. इसी कारण से सितम्बर 2014 में वाणिज्य मंत्रालय ने चीन में बने पटाखों पर बैन लगा दिया. लेकिन इसके बाद भी भारत में बड़ी मात्रा में इन चीनी पटाखों की तस्करी हो रही है और फर्जी लेबलिंग और नाम के साथ धड़ल्ले से बिक भी रहे हैं. अपने देश में बने पटाखे महंगे है और लोग उन्हें लेने के बजाय सस्ते और घटिया चीनी पटाखे खूब लेते है.
पटाखे और धुएं के कुप्रभावों को दरकिनार करते हुए लोग जो ये बे-सिर पैर की बाते कर रहे है, उनसे मैं कुछ बाते पूछना और कहना चाहती हूँ :
१. अगर हिन्दू हैं और हिन्दू सभ्यता के हिसाब से दिवाली मानाने में विश्वाश करते हैं तो जान लीजिये पटाखे हिन्दू सभ्यता में नहीं आते. उनका मोह छोड़ दीजिये!
2. अगर बच्चो की चिंता है कि पटाखों के बिना वो दिवाली कैसे मनाएगे तो एक अच्छे माता पिता का फ़र्ज़ निभाते हुए उन्हें दिवाली के असली मायने समझाइये. ये धर्म की विजय का प्रतीक है. अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है. गरीबो को मदद करे उन्ही पटाखों के पैसो से. उनकी दिवाली कुछ खास बनाये.
३. अगर आप व्यापारी है पटाखों के और होने वाले नुक्सान से आहत है तो सच में उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता. पर ये आप पर निर्भर करता है कि जानबूझकर जहर की सांस लेना चाहते हैं या फिर दिल्ली की पहले सी जहरीली हो चुकी हवा को सांस लेने की जगह देना चाहते हैं.
४. और अगर सिर्फ मौज के लिए पटाखों पर बवाल मचा रहे हैं तो पता करिये कि ये पटाखे हमारे फेफड़ो के लिए कितने नुकसानदायक है. दिमाग घूम जाएगा.!
दिवाली को घर की साफ़ सफाई, लक्ष्मी पूजा और खाने की बढ़िया चीजों के साथ मनाइये. किसी जरूरतमंद के घर में एक बल्ब लगवा दीजिये. किसी गरीब के बच्चो को नए कपड़ें दिलवा दीजिये. इससे अच्छी दिवाली कोई और हो ही नहीं सकती. मन को जो सकून मिलेगा ना वो इन बम पटाखों के शोर से कतई नहीं मिल सकता.
"आखिर कोई हमें हमारा ही त्योहार मनाने से कैसे रोक सकता है? यही तुमने होली के समय किया, हमसे ये कहकर पानी छीन लिया कि इस त्योहार में पानी की बहुत बर्बादी होती है.अब दिवाली पर पटाखे भी ? पर बकरीद के बारे में कोई कुछ क्यों नहीं कहता? जब लाखों मासूम जानवरों को मौत के घाट उतार दिया जाता है. क्रिसमस के बारे में क्या कहेंगे जब हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं? "
मैं भी हिन्दू परिवार से हूँ और जहा तक मेरा २५ सालो का ज्ञान कहना है दिवाली रौशनी का त्यौहार है. दिए जलाने और सब तरह का अंधियार खत्म करने का पर्व है. ये पटाखे कहा से आ गए हिन्दू सभ्यता में..? उत्तर भारत में माना जाता है कि रावण का वध करने के बाद जब भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तो नगरवासियों ने पूरे मार्ग को दिए जलाकर रौशन कर दिया था. ये दिए अधर्म पर धर्म के विजय के प्रतीक के रूप में जलाए गए थे. अंधेर पर उजाले की जीत के रूप में जलाए गए थे. और यही हम आज तक कर रहे है दिवाली मना कर. और भी बड़ी सारी कहानिया है दिवाली मानाने के पीछे पर पटाखे कही भी सीन में नहीं है. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पटाखे पर लगी पाबंदी से आहत एक वर्ग कह रहा है कि यह हिंदू भावनाओं का अपमान है.
अब मैं उन लोगो के ज्ञान चक्छु खोलना चाहती हूँ जो पटाखों को हिन्दू सभ्यता बता रहे है. पटाखे जलाना भारत की परंपरा कभी थी ही नहीं. पटाखों का आविष्कार सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था. इसके बाद तक 1200 ईस्वी से 1700 ईस्वी तक ये पूरे विश्व में लोगों की पसंद बन गए. 2014 तक भारत में चीन के बने पटाखे भारी मात्रा में आयात किए जाते थे. ये पटाखे सस्ते होते थे और इनमें पोटाशियम क्लोरेट भारी मात्रा में होता था. पोटाशियम क्लोरेट एक ज्वलनशील पदार्थ है जो तुरंत आग पकड़ लेता है. इसी कारण से सितम्बर 2014 में वाणिज्य मंत्रालय ने चीन में बने पटाखों पर बैन लगा दिया. लेकिन इसके बाद भी भारत में बड़ी मात्रा में इन चीनी पटाखों की तस्करी हो रही है और फर्जी लेबलिंग और नाम के साथ धड़ल्ले से बिक भी रहे हैं. अपने देश में बने पटाखे महंगे है और लोग उन्हें लेने के बजाय सस्ते और घटिया चीनी पटाखे खूब लेते है.
पटाखे और धुएं के कुप्रभावों को दरकिनार करते हुए लोग जो ये बे-सिर पैर की बाते कर रहे है, उनसे मैं कुछ बाते पूछना और कहना चाहती हूँ :
१. अगर हिन्दू हैं और हिन्दू सभ्यता के हिसाब से दिवाली मानाने में विश्वाश करते हैं तो जान लीजिये पटाखे हिन्दू सभ्यता में नहीं आते. उनका मोह छोड़ दीजिये!
2. अगर बच्चो की चिंता है कि पटाखों के बिना वो दिवाली कैसे मनाएगे तो एक अच्छे माता पिता का फ़र्ज़ निभाते हुए उन्हें दिवाली के असली मायने समझाइये. ये धर्म की विजय का प्रतीक है. अंधकार पर प्रकाश की विजय का पर्व है. गरीबो को मदद करे उन्ही पटाखों के पैसो से. उनकी दिवाली कुछ खास बनाये.
३. अगर आप व्यापारी है पटाखों के और होने वाले नुक्सान से आहत है तो सच में उसकी भरपाई कोई नहीं कर सकता. पर ये आप पर निर्भर करता है कि जानबूझकर जहर की सांस लेना चाहते हैं या फिर दिल्ली की पहले सी जहरीली हो चुकी हवा को सांस लेने की जगह देना चाहते हैं.
४. और अगर सिर्फ मौज के लिए पटाखों पर बवाल मचा रहे हैं तो पता करिये कि ये पटाखे हमारे फेफड़ो के लिए कितने नुकसानदायक है. दिमाग घूम जाएगा.!
दिवाली को घर की साफ़ सफाई, लक्ष्मी पूजा और खाने की बढ़िया चीजों के साथ मनाइये. किसी जरूरतमंद के घर में एक बल्ब लगवा दीजिये. किसी गरीब के बच्चो को नए कपड़ें दिलवा दीजिये. इससे अच्छी दिवाली कोई और हो ही नहीं सकती. मन को जो सकून मिलेगा ना वो इन बम पटाखों के शोर से कतई नहीं मिल सकता.
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