मेरा नाम प्रियंवदा पांडेय है और मैं एक शिक्षिका हूँ. मैं शिक्षिका होने के साथ-साथ एक बेटी, बहू, बहन और पत्नी के कर्तव्यो का पालन कर रही हूँ. परन्तु इन सभी रिश्तो से सबसे बाद में मिला रिश्ता मेरे लिए सबसे अनमोल और खास है. जिसे मैं इन सब रिश्तो से ज्यादा महत्व देती हूँ वो है मेरा रिश्ता मेरी बेटी आरोही के साथ. मैं माँ हूँ आरोही की. मुझे बेटों से कही अधिक बेटियाँ प्यारी है और ईश्वर ने मुझे एक साथ दो सुख दिए है, एक माँ बनने का सौभाग्य और दूसरा पुत्री देकर. आरोही को प्यार से गौरी भी बुलाते है सब.
मैं एक कामकाजी महिला हूँ और अपनी नौकरी के साथ अपनी बेटी की भी जिम्मेदारी निभाती हूँ. जब पहली बार आरोही मेरे हाथ में आई तो लगा मेरे हाथो में सारी दुनिया की खुशिया समा गई. आज मेरी बेटी ३ वर्ष की हो रही है. स्वाद में नमकीन चीजे खाना, सच बोलना, खाना खाने में नाटक, हठीला पन, सभी आदते उसमे दिखती है जो मेरी भी थी. मेरी नन्ही परी मेरी परछाई है. अभी उसके पास किचेन सेट के बर्तन है जिनसे वो सारा दिन खेलती है. मुझे चाय बना कर देती है. मैं भी चाय पीने का नाटक करती हूँ. प्रशंसा भी करती हूँ कि चाय अच्छी है और उसके चेहरे के भाव देखने लायक होते है. खाने में दूध रोटी या दाल रोटी ही खाती है और पूछो "बेटा, क्या बना रही हो..?" तो मुस्करा कर कहती है "दूध रोटी".
मैं स्कूल से आने के बाद का सारा समय अपनी बेटी को ही देती हूँ. उसके जन्म के बाद मैंने प्राइवेट ट्यूशन देना बंद कर दिया. अपनी हॉबी क्लासेज भी छोड़ दी. क्यूकी मैं अपनी बेटी को पर्याप्त समय देना चाहती हूँ. मेरे पति इलाहाबाद में काम करते है और मैं अपने मायके में रहकर अपनी नौकरी के साथ आरोही को भी देख रही हूँ. आरोही को उसके नाना-नानी ही रखते है जब मैं स्कूल जाती हूँ. कभी-कभी जब मैं और उसकी नानी घर पर नहीं रहते तो वो बेचारी नाना के भरोसे रहती है. भूखी रहती है. मैं जल्दी पहुंच गई तो ठीक वरना १ बजे तक कुछ खाती नहीं है. उस वक्त मैं बहुत परेशान हो जाती हूँ. पर नौकरी भी ताक पर नहीं रख पाती. उस समय मेरी बेटी की एक खुराक कम हो जाती है जिसकी भरपाई कोई नहीं कर पता. तब लगता है मैं उसके साथ अन्याय कर रही हूँ.
मुझे उसे माँ और पिता दोनों का ही प्यार देना होता है. कभी कभी सख्त भी होना पड़ता है. मैं अपने इस मातृत्व के सफर में अपने माता पिता को हमेशा याद रखूंगी. उनके बिना मेरा ये सफर अपूर्ण रहेगा. इसलिए मैं अपनी माँ तो विशेष रूप से आभार देती हूँ.
मैं एक कामकाजी महिला हूँ और अपनी नौकरी के साथ अपनी बेटी की भी जिम्मेदारी निभाती हूँ. जब पहली बार आरोही मेरे हाथ में आई तो लगा मेरे हाथो में सारी दुनिया की खुशिया समा गई. आज मेरी बेटी ३ वर्ष की हो रही है. स्वाद में नमकीन चीजे खाना, सच बोलना, खाना खाने में नाटक, हठीला पन, सभी आदते उसमे दिखती है जो मेरी भी थी. मेरी नन्ही परी मेरी परछाई है. अभी उसके पास किचेन सेट के बर्तन है जिनसे वो सारा दिन खेलती है. मुझे चाय बना कर देती है. मैं भी चाय पीने का नाटक करती हूँ. प्रशंसा भी करती हूँ कि चाय अच्छी है और उसके चेहरे के भाव देखने लायक होते है. खाने में दूध रोटी या दाल रोटी ही खाती है और पूछो "बेटा, क्या बना रही हो..?" तो मुस्करा कर कहती है "दूध रोटी".
मैं स्कूल से आने के बाद का सारा समय अपनी बेटी को ही देती हूँ. उसके जन्म के बाद मैंने प्राइवेट ट्यूशन देना बंद कर दिया. अपनी हॉबी क्लासेज भी छोड़ दी. क्यूकी मैं अपनी बेटी को पर्याप्त समय देना चाहती हूँ. मेरे पति इलाहाबाद में काम करते है और मैं अपने मायके में रहकर अपनी नौकरी के साथ आरोही को भी देख रही हूँ. आरोही को उसके नाना-नानी ही रखते है जब मैं स्कूल जाती हूँ. कभी-कभी जब मैं और उसकी नानी घर पर नहीं रहते तो वो बेचारी नाना के भरोसे रहती है. भूखी रहती है. मैं जल्दी पहुंच गई तो ठीक वरना १ बजे तक कुछ खाती नहीं है. उस वक्त मैं बहुत परेशान हो जाती हूँ. पर नौकरी भी ताक पर नहीं रख पाती. उस समय मेरी बेटी की एक खुराक कम हो जाती है जिसकी भरपाई कोई नहीं कर पता. तब लगता है मैं उसके साथ अन्याय कर रही हूँ.
मुझे उसे माँ और पिता दोनों का ही प्यार देना होता है. कभी कभी सख्त भी होना पड़ता है. मैं अपने इस मातृत्व के सफर में अपने माता पिता को हमेशा याद रखूंगी. उनके बिना मेरा ये सफर अपूर्ण रहेगा. इसलिए मैं अपनी माँ तो विशेष रूप से आभार देती हूँ.
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