शादियाँ हमारे समाज का एक हिस्सा हैं और साल दर साल लड़के लड़कियाँ शादी के बंधन में बंधते ही रहते हैं.
शादियों से जुड़ी एक अजीब सी आदत या यूं कहूँ परंपरा मुझे बड़ा अचरज में डाल देती हैं. जो लड़का आवारा, नाकारा या नालायक हो उसकी शादी करवा दो. लड़के के घरवालों को ये लगता हैं कि शादी के बाद लड़का सुधर जाएगा. मुझे आज तक समझ नहीं आता कि ऐसा कैसे होता होगा? जो लड़का खुद से अपने जीवन के बारे में सोच ना सके वो किसी दूसरे घर से आई लड़की के बारे में कैसे सोच पाएगा..? पर चल रहा हैं ये सिस्टम जमानो से..
कल धर्मेंद्र जी का जन्मदिन था. मैंने उनके ऊपर लिखे एक लेख में पढ़ा कि धर्मेंद्र जी के पिता जी ने उनकी शादी फिल्मों का भूत उनके सर से उतारने के लिए कर दी थी. ये कब से चला आ रहा है कि लड़के को सुधारने के लिए उसकी शादी कर दो..? मुझे नहीं लगता कोई सुधरता है क्योंकि धर्मेंद्र जी ने खुद कबूला कि वो सुधरे नहीं शादी के बाद भी.. वो कहते हैं " एक बार मुझे भी लगा कि अब स्थिर होना चाहिए. घर-गृहस्थी है, जिम्मेदारियां हैं. जुआ खेल पाने का वक्त गया. बहुतेरी कोशिश की कि कहीं जम जाऊं. पर तभी ‘फिल्मफेयर-यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स’ के प्रतिभा चुनाव की घोषणा पढ़ी. एक बार फिर मन उछला. एक स्टूडियो में जाकर फोटो खिंचवा आया, भेज दिए." उनके बाबूजी यही वाला भूत उतरना चाहते थे. फिल्मों के भूत की वजह से ही धर्मेंद्र जी इंटर और बीए में फिर फेल, फिर फेल, फिर फेल...होते गए थे. हालात ये हो गए थे कि हट्टे कट्टे धर्मेंद्र जी को बस मज़दूरी करने का काम मिल रहा था. और फिर उनकी आदते ना बदलती देख बाबूजी ने एक अचूक इलाज सोचा. शादी.
मेरे जान पहचान का ही एक किस्सा हैं. लड़का ३० पहुंचने वाला था और बेरोजगार था. खुशकिस्मती से पिता जी नौकरी कर रहे थे तो साहब ने खुद से कभी सोचा ही नहीं कि एक दिन उन्हें भी नौकरी करनी होगी. किसी तरह BA किया था पर कहाँ नौकरियाँ रखी हैं आज के ज़माने में!! पढ़े-लिखे लोग तो मारे मारे फिर रहे हैं और BA पास के लिए कोई अच्छी नौकरी नहीं हैं. पर एक बात और होती हैं जो किसी भी इन्सान को सफल बनती हैं, वो हैं मेहनत, जो कि जनाब के बस की नहीं थी. जब कई सालो तक हाथ पैर मारने पर साहब कुछ नहीं कर पाए तो घरवालों ने शादी करवा दी. कहा गया कि जब उसके सर पर जिम्मेदारियां बढ़ जाएगी तो कुछ न कुछ खुद ही करने लगेगा.
शादी के १५ साल हो गए हैं पर साहब कुछ नहीं कर पाए हैं आज तक. बीच बीच में छोटी मोटी नौकरियाँ की भी पर टिक कही नहीं पाए. 3 बच्चे भी हैं एक लड़का और दो बेटियाँ. जैसे जैसे बच्चे बड़े हो रहे हैं परिवार के खर्च भी बढ़ रहे हैं. अब साहब परेशान हैं कि क्या करे.. अपने पिता जी के सामने हाथ फैला फैला कर थक गए हैं. कई बार डिप्रेसन में भी जा चुके हैं. पर अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत..पत्नी सिलाई करती हैं और बच्चे संभाल रही हैं. किसी तरह एक एक दिन गुज़र रहा हैं परिवार का..
समाज और परिवारों में आमतौर पर यही सुनने को मिला हैं अमुक लड़का शादी के पहले कुछ नहीं करता था पर शादी के बाद बढ़िया बिज़नेस कर रहा हैं. पर मैंने खुद से तो कम ही ऐसे उदाहरण देखे हैं. उलटे बेरोजगार लड़को की शादी एक साथ कई जीवन बर्बाद करती हैं. सबसे ख़राब हालात तो लड़की की होती हैं. जिसके माता पिता परिस्तिथियोंवश या जानबूझ कर उसकी शादी किसी बेरोजगार से करवा देते हैं. वो अपनी जिम्मेदारी तो निभा देते हैं और समाज को भी दिखा देते हैं कि उनकी लड़की ख़ुशी ख़ुशी व्याह कर अपने घर गई हैं. पर वो ये भूल जाते हैं कि शादी के बाद भी जिंदगी होती हैं लड़की की. उसे ना पति का सहयोग मिलता हैं और ना ससुराल वालो का. फिर बच्चे हो जाए तो हर दिन दूसरो के ताने-उलाहने सुनने में जाता हैं. अगर मायके वाले भी साथ ना दे तो हालात और बदतर हो जाते हैं.
इस प्रथा पर एक जांच होनी चाहिए और आकड़े सामने आने चाहिए कि कितने प्रतिशत लड़के शादी करके सुधर गए.. और उसके अनुसार अब ये परम्परा बंद होनी चाहिए.. ऐसा मैंने लेख को थोड़ा हल्का करने के लिए लिखा. पर सच में ये सोच बदलनी चाहिए परिवारों को. अगर लड़का नौकरी नहीं कर रहा तो उसकी शादी करने की जगह उसे किसी और बिज़नेस में लगाए. उसके पसंद का काम शुरू करने में उसकी मदद करे. बहुत कम ही लड़के, जो कोई काम धंधा नहीं करते, अपना परिवार होने पर अपनी जवाबदेही खुद से समझते हैं. तो पहले कोशिश करके एक स्थिर नौकरी या बिज़नेस करने दे उसे फिर ही शादी का सोचे. उसकी शादी करवा कर और जिंदगियों के साथ ना खेले.
मैं ये नहीं कहती कि अगर पति का काम ना सही चले तो पत्नी को मदद नहीं करनी चाहिए और सारा दोष पति को देना चाहिए. पर जान बूझ कर परिवारों को ऐसी जगह लड़की की शादी नहीं करनी चाहिए जहाँ लड़का बेरोजगार हो. और ये रिश्तेदारों को भी गलत सलाह देने के बचना चाहिए. अगर किसी बेरोजगार लड़के की शादी की बात चले तो वहाँ अपना पक्ष जरूर रखे कि बिना किसी काम के लड़का परिवार का बोझ नहीं उठा पाएगा. शायद इस बदलाव से कई जिंदगिया बेहतर हो सकती हैं.
वैसे धर्मेंद्र जी ने एक नहीं दो-दो शादियाँ की पर सिनेमा का भूत तो उतरा ही नहीं कभी उनके सर से..
शादियों से जुड़ी एक अजीब सी आदत या यूं कहूँ परंपरा मुझे बड़ा अचरज में डाल देती हैं. जो लड़का आवारा, नाकारा या नालायक हो उसकी शादी करवा दो. लड़के के घरवालों को ये लगता हैं कि शादी के बाद लड़का सुधर जाएगा. मुझे आज तक समझ नहीं आता कि ऐसा कैसे होता होगा? जो लड़का खुद से अपने जीवन के बारे में सोच ना सके वो किसी दूसरे घर से आई लड़की के बारे में कैसे सोच पाएगा..? पर चल रहा हैं ये सिस्टम जमानो से..
कल धर्मेंद्र जी का जन्मदिन था. मैंने उनके ऊपर लिखे एक लेख में पढ़ा कि धर्मेंद्र जी के पिता जी ने उनकी शादी फिल्मों का भूत उनके सर से उतारने के लिए कर दी थी. ये कब से चला आ रहा है कि लड़के को सुधारने के लिए उसकी शादी कर दो..? मुझे नहीं लगता कोई सुधरता है क्योंकि धर्मेंद्र जी ने खुद कबूला कि वो सुधरे नहीं शादी के बाद भी.. वो कहते हैं " एक बार मुझे भी लगा कि अब स्थिर होना चाहिए. घर-गृहस्थी है, जिम्मेदारियां हैं. जुआ खेल पाने का वक्त गया. बहुतेरी कोशिश की कि कहीं जम जाऊं. पर तभी ‘फिल्मफेयर-यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स’ के प्रतिभा चुनाव की घोषणा पढ़ी. एक बार फिर मन उछला. एक स्टूडियो में जाकर फोटो खिंचवा आया, भेज दिए." उनके बाबूजी यही वाला भूत उतरना चाहते थे. फिल्मों के भूत की वजह से ही धर्मेंद्र जी इंटर और बीए में फिर फेल, फिर फेल, फिर फेल...होते गए थे. हालात ये हो गए थे कि हट्टे कट्टे धर्मेंद्र जी को बस मज़दूरी करने का काम मिल रहा था. और फिर उनकी आदते ना बदलती देख बाबूजी ने एक अचूक इलाज सोचा. शादी.
मेरे जान पहचान का ही एक किस्सा हैं. लड़का ३० पहुंचने वाला था और बेरोजगार था. खुशकिस्मती से पिता जी नौकरी कर रहे थे तो साहब ने खुद से कभी सोचा ही नहीं कि एक दिन उन्हें भी नौकरी करनी होगी. किसी तरह BA किया था पर कहाँ नौकरियाँ रखी हैं आज के ज़माने में!! पढ़े-लिखे लोग तो मारे मारे फिर रहे हैं और BA पास के लिए कोई अच्छी नौकरी नहीं हैं. पर एक बात और होती हैं जो किसी भी इन्सान को सफल बनती हैं, वो हैं मेहनत, जो कि जनाब के बस की नहीं थी. जब कई सालो तक हाथ पैर मारने पर साहब कुछ नहीं कर पाए तो घरवालों ने शादी करवा दी. कहा गया कि जब उसके सर पर जिम्मेदारियां बढ़ जाएगी तो कुछ न कुछ खुद ही करने लगेगा.
शादी के १५ साल हो गए हैं पर साहब कुछ नहीं कर पाए हैं आज तक. बीच बीच में छोटी मोटी नौकरियाँ की भी पर टिक कही नहीं पाए. 3 बच्चे भी हैं एक लड़का और दो बेटियाँ. जैसे जैसे बच्चे बड़े हो रहे हैं परिवार के खर्च भी बढ़ रहे हैं. अब साहब परेशान हैं कि क्या करे.. अपने पिता जी के सामने हाथ फैला फैला कर थक गए हैं. कई बार डिप्रेसन में भी जा चुके हैं. पर अब पछतावे होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत..पत्नी सिलाई करती हैं और बच्चे संभाल रही हैं. किसी तरह एक एक दिन गुज़र रहा हैं परिवार का..
समाज और परिवारों में आमतौर पर यही सुनने को मिला हैं अमुक लड़का शादी के पहले कुछ नहीं करता था पर शादी के बाद बढ़िया बिज़नेस कर रहा हैं. पर मैंने खुद से तो कम ही ऐसे उदाहरण देखे हैं. उलटे बेरोजगार लड़को की शादी एक साथ कई जीवन बर्बाद करती हैं. सबसे ख़राब हालात तो लड़की की होती हैं. जिसके माता पिता परिस्तिथियोंवश या जानबूझ कर उसकी शादी किसी बेरोजगार से करवा देते हैं. वो अपनी जिम्मेदारी तो निभा देते हैं और समाज को भी दिखा देते हैं कि उनकी लड़की ख़ुशी ख़ुशी व्याह कर अपने घर गई हैं. पर वो ये भूल जाते हैं कि शादी के बाद भी जिंदगी होती हैं लड़की की. उसे ना पति का सहयोग मिलता हैं और ना ससुराल वालो का. फिर बच्चे हो जाए तो हर दिन दूसरो के ताने-उलाहने सुनने में जाता हैं. अगर मायके वाले भी साथ ना दे तो हालात और बदतर हो जाते हैं.
इस प्रथा पर एक जांच होनी चाहिए और आकड़े सामने आने चाहिए कि कितने प्रतिशत लड़के शादी करके सुधर गए.. और उसके अनुसार अब ये परम्परा बंद होनी चाहिए.. ऐसा मैंने लेख को थोड़ा हल्का करने के लिए लिखा. पर सच में ये सोच बदलनी चाहिए परिवारों को. अगर लड़का नौकरी नहीं कर रहा तो उसकी शादी करने की जगह उसे किसी और बिज़नेस में लगाए. उसके पसंद का काम शुरू करने में उसकी मदद करे. बहुत कम ही लड़के, जो कोई काम धंधा नहीं करते, अपना परिवार होने पर अपनी जवाबदेही खुद से समझते हैं. तो पहले कोशिश करके एक स्थिर नौकरी या बिज़नेस करने दे उसे फिर ही शादी का सोचे. उसकी शादी करवा कर और जिंदगियों के साथ ना खेले.
मैं ये नहीं कहती कि अगर पति का काम ना सही चले तो पत्नी को मदद नहीं करनी चाहिए और सारा दोष पति को देना चाहिए. पर जान बूझ कर परिवारों को ऐसी जगह लड़की की शादी नहीं करनी चाहिए जहाँ लड़का बेरोजगार हो. और ये रिश्तेदारों को भी गलत सलाह देने के बचना चाहिए. अगर किसी बेरोजगार लड़के की शादी की बात चले तो वहाँ अपना पक्ष जरूर रखे कि बिना किसी काम के लड़का परिवार का बोझ नहीं उठा पाएगा. शायद इस बदलाव से कई जिंदगिया बेहतर हो सकती हैं.
वैसे धर्मेंद्र जी ने एक नहीं दो-दो शादियाँ की पर सिनेमा का भूत तो उतरा ही नहीं कभी उनके सर से..
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