कभी रस्ते में अगर गाय दिख जाये और कोई ऐसा भी हो जो उसे आज भी गाय के ही नाम से पुकारता हो तो कुछ बच्चे शायद से पूछ बैठे कि "गाय क्या होता है?"
खुद को खुसनसीब समझिये, मुस्कुराइए और बड़े प्यार से समझाइये की, "गाय मीन्स काऊ". अब यही ज़माना है, हम कुछ आखरी लोग बचे है जो अभी भी हिंदी के शब्दों को समझते है और ये काबिलियत रखते है की अपने आने वाली पीढ़ी को उसका अंग्रेजी में मतलब समझा सके.
यूँ तो हाल ही में ऑक्सफ़ोर्ड इंग्लिश डिक्सेनरी में सत्तर हिंदुस्तानी शब्द शामिल किये गए है. हम एक ऐसे समय की ओर निकल आये है जब थोड़े बहुत ही हिंदी जानने वाले बचे है जो ये जानते हुए भी की उस बात को अंग्रेजी में कैसे कहेंगे सबके सामने हिंदी बोलने में संकोच नहीं करते. बाकी तो ज़माना ही अंग्रेजी मेडीयम का है.
हमारे देश में जहा थोड़ी थोड़ी दूर पर ही भाषा बदल जाती है और हिंदी भी कई अलग अलग रूपों में बोली जाती है. पर कमाल की बात है कि सब के सब अंग्रेजी पर एक हो जाते है. क्यूंकि अंग्रेजी अब वो माध्यम है जिससे और किसी क्षेत्रीय भाषा को बोलने वालो की भावनाये आहत नहीं होती. ये किसी दूसरे देश की भाषा हम अलग-अलग भाषा बोलने वाले हिन्दुस्तानियों ख़ुशी-ख़ुशी एक कर देती है.
अब शब्द भी तो ऐसे हैं जिनके हिंदी अर्थ हमारे इतिहासकारो और साहित्यकारों ने कभी अपने विचारो में प्रयोग ही नहीं किये जैसे कंप्यूटर, ट्विटर, कमेंटरी, फ्लैट, फ्रीलांसर, फ्रिज, ब्यूटी पारलर, ब्लॉग, वेबसाइट, और बहुत कुछ. मुझे लगता है हिंदी से ज्यादा अब हम उर्दू शब्दों का उपयोग करने में आसानी समझते है. अब ये शब्द "ज्यादा" भी उर्दू है यहाँ. पर करे क्या शुद्ध हिंदी बोलने और लिखने में असहज लगती है अब. समाचार पत्रों में अब ‘समाचार’ शब्द दिखाई ही नहीं देता उसका स्थान ‘खबर’ ले चुकी है. एक टी. वी. चैनल पर प्रतिष्ठित पत्रकार रजत शर्मा ‘वैलकम बैक’ और नवाज शरीफ को पाकिस्तान का ‘वजीर-ए-आजम’ और नरेन्द्र मोदी को ‘पी.एम.’ कहते हैं तो हंसी आ जाती है कि जब नवाज वजीर-ए-आजम हो सकते हैं तो मोदी प्रधानमंत्री क्यों नहीं?
करीब दो साल पहले मेरे ऑफिस में दिवाली के मौके पर सजावट करी गयी और हमने मंदिर की यानि टेम्पल की थीम पर सजाया. सजावट में मंदिर के स्वरुप को और बेहतर तरीके से दिखाने के लिए हमने जूते चप्पल उतरने का एक स्थान भी बना दिया. उस स्थान पर एक नोट भी लगाया जाना था जो सबको ये बताये की "कृपया जूते चप्पल यहाँ उतारें". अब इस शब्द कृपया पर दो मत बन गए. एक वो जो कह रहे थे ये शब्द कुछ यूँ लिखा जाना चाहिए जूं "कृप्या". दूसरा मत ये था की लिखो "कृपया".
बात काफी समय तक समझो समझाओ पर रही और फिर बहस में बदल गयी. गूगल की सहायता काफी ना पड़ी क्यूंकि वहाँ दोनों ही शब्द एक ही मतलब बता रहे थे. पूरा मंदिर सज कर तैयार हो गया पर ये बात तय न हो पायी कि इस शब्द में 'प' पूरा प होगा या आधा. तो हमने बाकी के ऑफिस के लोगो से भी उनकी राय लेने की बात सोची. सब अपने मुँह से एक या दो या तीन बार ये शब्द बोल कर तय करने लगे कि आखिर कौन सा शब्द सही है. चारो ओर गुनगुनी सी कृप्या-कृपया आवाज़े आने लगी. और फिर पूरा ऑफिस दोनों मतों में यूं बँट गया जैसे विश्व युद्ध में नार्थ और साऊथ पोल. ये तुलना करने पर मैं इसलिए मजबूर हो गयी क्यूकी लोग एक दूसरे को उनके भाषा ज्ञान पर कटाक्ष करने लगे थे.
सारी बेहेस को शांत करवाने के बाद हमने "please take off your shoes here" लिख कर बात ख़तम की.
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खुद को खुसनसीब समझिये, मुस्कुराइए और बड़े प्यार से समझाइये की, "गाय मीन्स काऊ". अब यही ज़माना है, हम कुछ आखरी लोग बचे है जो अभी भी हिंदी के शब्दों को समझते है और ये काबिलियत रखते है की अपने आने वाली पीढ़ी को उसका अंग्रेजी में मतलब समझा सके.
यूँ तो हाल ही में ऑक्सफ़ोर्ड इंग्लिश डिक्सेनरी में सत्तर हिंदुस्तानी शब्द शामिल किये गए है. हम एक ऐसे समय की ओर निकल आये है जब थोड़े बहुत ही हिंदी जानने वाले बचे है जो ये जानते हुए भी की उस बात को अंग्रेजी में कैसे कहेंगे सबके सामने हिंदी बोलने में संकोच नहीं करते. बाकी तो ज़माना ही अंग्रेजी मेडीयम का है.
हमारे देश में जहा थोड़ी थोड़ी दूर पर ही भाषा बदल जाती है और हिंदी भी कई अलग अलग रूपों में बोली जाती है. पर कमाल की बात है कि सब के सब अंग्रेजी पर एक हो जाते है. क्यूंकि अंग्रेजी अब वो माध्यम है जिससे और किसी क्षेत्रीय भाषा को बोलने वालो की भावनाये आहत नहीं होती. ये किसी दूसरे देश की भाषा हम अलग-अलग भाषा बोलने वाले हिन्दुस्तानियों ख़ुशी-ख़ुशी एक कर देती है.
अब शब्द भी तो ऐसे हैं जिनके हिंदी अर्थ हमारे इतिहासकारो और साहित्यकारों ने कभी अपने विचारो में प्रयोग ही नहीं किये जैसे कंप्यूटर, ट्विटर, कमेंटरी, फ्लैट, फ्रीलांसर, फ्रिज, ब्यूटी पारलर, ब्लॉग, वेबसाइट, और बहुत कुछ. मुझे लगता है हिंदी से ज्यादा अब हम उर्दू शब्दों का उपयोग करने में आसानी समझते है. अब ये शब्द "ज्यादा" भी उर्दू है यहाँ. पर करे क्या शुद्ध हिंदी बोलने और लिखने में असहज लगती है अब. समाचार पत्रों में अब ‘समाचार’ शब्द दिखाई ही नहीं देता उसका स्थान ‘खबर’ ले चुकी है. एक टी. वी. चैनल पर प्रतिष्ठित पत्रकार रजत शर्मा ‘वैलकम बैक’ और नवाज शरीफ को पाकिस्तान का ‘वजीर-ए-आजम’ और नरेन्द्र मोदी को ‘पी.एम.’ कहते हैं तो हंसी आ जाती है कि जब नवाज वजीर-ए-आजम हो सकते हैं तो मोदी प्रधानमंत्री क्यों नहीं?
करीब दो साल पहले मेरे ऑफिस में दिवाली के मौके पर सजावट करी गयी और हमने मंदिर की यानि टेम्पल की थीम पर सजाया. सजावट में मंदिर के स्वरुप को और बेहतर तरीके से दिखाने के लिए हमने जूते चप्पल उतरने का एक स्थान भी बना दिया. उस स्थान पर एक नोट भी लगाया जाना था जो सबको ये बताये की "कृपया जूते चप्पल यहाँ उतारें". अब इस शब्द कृपया पर दो मत बन गए. एक वो जो कह रहे थे ये शब्द कुछ यूँ लिखा जाना चाहिए जूं "कृप्या". दूसरा मत ये था की लिखो "कृपया".
बात काफी समय तक समझो समझाओ पर रही और फिर बहस में बदल गयी. गूगल की सहायता काफी ना पड़ी क्यूंकि वहाँ दोनों ही शब्द एक ही मतलब बता रहे थे. पूरा मंदिर सज कर तैयार हो गया पर ये बात तय न हो पायी कि इस शब्द में 'प' पूरा प होगा या आधा. तो हमने बाकी के ऑफिस के लोगो से भी उनकी राय लेने की बात सोची. सब अपने मुँह से एक या दो या तीन बार ये शब्द बोल कर तय करने लगे कि आखिर कौन सा शब्द सही है. चारो ओर गुनगुनी सी कृप्या-कृपया आवाज़े आने लगी. और फिर पूरा ऑफिस दोनों मतों में यूं बँट गया जैसे विश्व युद्ध में नार्थ और साऊथ पोल. ये तुलना करने पर मैं इसलिए मजबूर हो गयी क्यूकी लोग एक दूसरे को उनके भाषा ज्ञान पर कटाक्ष करने लगे थे.
सारी बेहेस को शांत करवाने के बाद हमने "please take off your shoes here" लिख कर बात ख़तम की.
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