सभी बेटियों के लिए..
" तू डरे नहीं.. थमे नहीं.. रुके नहीं..
तू हर अड़चन के आगे बढ़ती रहे..
तू सूरज बने.. रोशन करे ये जहाँ..
तू चंदा बने.. शीतल करे.. जैसे सुहानी हवा..
तू तारो सा चमक और भी ऊंचा उड़ती रहे..
तू हर अड़चन के आगे बढ़ती रहे..
चाहे कोई कितना हॅसे, तू कभी हतास ना हो..
दम चाहे कोई कितने भरे.तू कभी परेशां ना हो..
तू दुनिया को छोड़ अपने सपने बुनती रहे..
तू हर अड़चन के आगे बढ़ती रहे..
गर कभी मुश्किलों का कोहरा करे दे अँधेरा..
तू चिराग बन कर उसे मिटा देना..
गर कोई कोशिश करे छूने की..
तू काली बन कर सबक सिखला देना..
सब कुछ है मुमकिन ये मान तू कदम रखती रहे..
तू हर अड़चन के आगे बढ़ती रहे..
जब कभी मन में हो गुत्थियां हज़ार..
हर रोज होने लगे रिश्ते गलतफ़हमियों के शिकार..
तू दूसरे की सुन फिर अपना पक्ष रखना..
पर याद रहे अच्छा नहीं होता एक हद से ज्यादा झुकना..
तू अपने अस्तित्व के लिए का मान रखती रहे..
तू हर अड़चन के आगे बढ़ती रहे..
चुप रह कर जीना अब सच में मुश्किल है..
अन्याय सहने वाला अब और भी बड़ा मुझदिल है..
तू बोलेगी, मुँह खोलेगी तभी जमाना बदलेगा..
जब होगा प्रतिरोध, अनुरोध तभी अलग स्वर लेगा..
तू अपने हक़ के लिए निडर लगती रहे..
तू हर अड़चन के आगे बढ़ती रहे.."
Loved it Shipra. Beautiful poem. Our daughters need this remider time and again to be fearless and bold. Thanks for linking up with #MMM
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