आज चर्चा फिल्मो की हो जाए.. आपके भी देख ही लिया होगा ट्रेलर आने वाली फिल्म पद्मावती का. काफी आलिशान और चर्चित रहा ट्रेलर का आना. सोशल मीडिया पर लोग पगला से गए. अगर ट्रेलर की बात की जाए तो लगता है जैसे संजय लीला भंसाली जी ने बाहुबली की भव्यता को दोहराने की कोशिश की है. क्या युद्ध के द्रश्य है.. क्या विज़ुअल्स है..और क्या बैकग्राउंड म्यूजिक.. सब भव्य है.. रानी पद्मावती बनी दीपिका पादुकोण राजपूती आन, बान और शान को अपने भारी भरकम गहनों से और एक मात्र डायलॉग से दिखाती नज़र आती है ट्रेलर में. गहने देख कर मुझे संजय लीला भंसाली जी एक और फिल्म "देवदास" याद आ गई. उसमे भी काफी महंगे और भारी भरकम गहने पहले थे दोनों माधुरी और ऐश्वर्या ने. ट्रेलर में पद्मावती के बाद दिखाई देते है महाराज रतन सिंह बने शहीद कपूर. कई जगह मैंने पढ़ा कि वो फिट नहीं हो पा रहे है एक राजपूत राजा के रोल में. उनकी आवाज में वो दम नहीं है. पर पूछने वाली बात ये है कि इन लोगो को कैसे पता कि रतन सिंह की आवाज कैसी थी? पूरे ट्रेलर में दो ही डायलॉग हैं. जो दोनों ही राजपूत आन-बान और शान को बताते हुए बोले गए हैं. एक राजा रतन सिंह का और एक रानी पद्मावती का, लेकिन बिना कुछ बोले अगर किसी ने इस ट्रेलर में जान डाली है तो वो है अलाउद्दीन खिलजी बने रणवीर सिंह ने. अगर ट्रेलर नहीं देखा है अभी तक तो पहले उसका मज़ा लीजिये..
अब जरा बातें खिलज़ी के बारे में. ठीक से तो याद नहीं पर शायद क्लास थर्ड में पढ़ा था खिलज़ी के बारे में. लेकिन तब वो इतना डरावना नहीं लगा था जितना कि ये पद्मावती का ट्रेलर देख कर लगा. एक हीरो किस हद तक विलेन दिख सकता है ये कोई रणवीर से पूछे.वो इतने ज्यादा क्रूर दिख रहे है कि असली खिलज़ी भी काम्प्लेक्स में आ जाए. ट्रेलर में खिलज़ी को सनकी, ताकतवर और गुस्सैल दिखाया गया है. वो एकदम जानवरो की तरह बर्बरीक है जो अपने आप को सबसे ऊपर समझता है. दाद देनी पड़ेगी संजय लीला भंसाली जी की रचनात्मकता की. सब कुछ लार्जर थान लाइफ है ट्रेलर में. पर उन्होंने हिस्ट्री सही से नहीं पढ़ी थी शायद. चलो बचपन में तो सभी को इतिहास पढ़ना बुरा ही लगता है, तो फिल्म बनाने से पहले ही कुछ खोज बीन कर ली होती खिलज़ी के बारे में..अगर इतिहास की किताबो पर भरोसा करे तो खिलज़ी इतना भी बुरा नहीं था जितना भंसाली जी दिखाने की कोशिश कर रहे है.
ख़िलज़ी पर्सियन सभ्यता को मानता था. असल में सुल्तान बलबन पहला ऐसा शाशक था जिसने पर्सियन मान्यताओं के हिसाब से राजा को ईश्वर की छवि (जिल्ले इलाही) बताया. बलबन के बाद के सारे मुग़ल शासक जहा एक तरफ इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए क्रूर से क्रूर युद्ध लड़ते थे, वही वो अपनी आवाम के साथ ज्यादा बर्बर नहीं थे. वो लिहाज और तरीको को मानने वाले थे. वो ख़ूबसूरती के कद्रदान थे और अच्छी चीजों की कदर करते थे. ट्रेलर में एक दृश्य है जिसमे खिलजी को बड़े असभ्य तरीके से मीट खाते दिखाया गया है. इस बात से इतिहासकार एकदम असहमत है. खिलज़ी असभ्य नहीं था इस तरह. ट्रेलर में खिलज़ी के बाल जरूरत से ज्यादा लम्बे दिखाए गए है. जबकि इतिहासकारो के हिसाब से खिलजी एक कटटर मुस्लिम था और इस्लाम में लम्बे बाल रखना पुरुषो के लिए मना है. खिलजी को एक खूंखार आदमखोर टाइप का दिखाने के लिए भंसाली जी ने उसके तम्बुओ को काला और अंधकूपकारागार सा दिखाया है. पर पर्सियन लोग रंगो के प्रशंशक थे और इतिहास की किताबे भी यही कहती है तब तम्बुओ में भी बेशकीमती चीजों का काम होता है, महलो की ख़ूबसूरती के तो क्या कहने थे. वही एक और चीज उल्टी पुल्टी है ट्रेलर में. खिलजी को फर के बने कपड़ें पहने दिखाया है. जबकि उस समय के सभी मुग़ल शासक सिर्फ रेशमी कपड़ें पहनते थे.
मैं ये नहीं कह रही कि ये फिल्म एकदम बर्बाद है या देखने लायक नहीं होगी. नहीं नहीं, ऐसा एकदम नहीं कहना चाहती मैं. पर मुझे ये इतिहास से रूबरू कराते नहीं दिखती. अपनी भव्य फिल्म से ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने के सपने देखते देखते भंसाली जी ये भूल गए कि पीरियड फिल्मो से ये उम्मीद की जाती है कि वो इतिहास के तथ्यों को मनोरंजक तरीके से दिखाए. इतिहास को ही उलट देना कहा का न्याय है? मैं ये तो नहीं कह सकती कि करनी सेना का विरोध इस फिल्म के लिए सही कदम है. पर मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूँ कि अपने देश की फिल्म में एक ऐसे आदमी को गौरवान्वित किआ जाए जिसने भारत देश की गरिमा को नुकसान पहुंचाया. करनी सेना भी पद्मावती और खिलज़ी के बीच किसी भी तरह के रिश्ते को दिखाने के खिलाफ है.
वैसे गौर करने वाले बात ये है कि भंसाली जी ने एक और गलती कर दी, फिल्म का नाम पद्मावती रख दिया. अजी, नाम खिलजी होना चाहिए इस फिल्म का . सब तरफ खिलज़ी ही खिलज़ी है ट्रेलर में तो. बिना बोले ही अलाउद्दीन खिलजी बने रणवीर सिंह ने लोगो का दिल जीत लिया. लड़किया दीवानी हुई जा रही है खिलज़ी की. कोई कह रही है "आई ऍम इन लव विथ ईविल खिलज़ी.. ", तो कोई कह रही है "वो बर्बर चेहरा, वो आँखे..उफ़ मैं तो अभी से ही खिलज़ी की दीवानी हो गई हूँ.." पता नहीं फिल्म रिलीज़ होने के बाद इन लड़कियों का क्या होगा.. ये हीरो की नहीं विलेन की फिल्म जान पड़ती है. जिसमे हीरो की जगह लोग विलेन की तारीफों के पुल बांध रहे है. "ज़माना बदल गया प्यारे.. पुरानी बात नहीं होगी.." सुना था. पर यहाँ बात तो पुरानी ही है मगर ज़रा हटके कहानी है. जिसे क्रिएटिव फ्रीडम के नाम से लोग सराह रहे है.. मूवी आए तो देखते है क्या स्टोरी है.. अभी तो सभी लिफाफा देख कर खत का मज़मून जानने की कोशिश कर रहे है..
अब जरा बातें खिलज़ी के बारे में. ठीक से तो याद नहीं पर शायद क्लास थर्ड में पढ़ा था खिलज़ी के बारे में. लेकिन तब वो इतना डरावना नहीं लगा था जितना कि ये पद्मावती का ट्रेलर देख कर लगा. एक हीरो किस हद तक विलेन दिख सकता है ये कोई रणवीर से पूछे.वो इतने ज्यादा क्रूर दिख रहे है कि असली खिलज़ी भी काम्प्लेक्स में आ जाए. ट्रेलर में खिलज़ी को सनकी, ताकतवर और गुस्सैल दिखाया गया है. वो एकदम जानवरो की तरह बर्बरीक है जो अपने आप को सबसे ऊपर समझता है. दाद देनी पड़ेगी संजय लीला भंसाली जी की रचनात्मकता की. सब कुछ लार्जर थान लाइफ है ट्रेलर में. पर उन्होंने हिस्ट्री सही से नहीं पढ़ी थी शायद. चलो बचपन में तो सभी को इतिहास पढ़ना बुरा ही लगता है, तो फिल्म बनाने से पहले ही कुछ खोज बीन कर ली होती खिलज़ी के बारे में..अगर इतिहास की किताबो पर भरोसा करे तो खिलज़ी इतना भी बुरा नहीं था जितना भंसाली जी दिखाने की कोशिश कर रहे है.
ख़िलज़ी पर्सियन सभ्यता को मानता था. असल में सुल्तान बलबन पहला ऐसा शाशक था जिसने पर्सियन मान्यताओं के हिसाब से राजा को ईश्वर की छवि (जिल्ले इलाही) बताया. बलबन के बाद के सारे मुग़ल शासक जहा एक तरफ इस्लाम को बढ़ावा देने के लिए क्रूर से क्रूर युद्ध लड़ते थे, वही वो अपनी आवाम के साथ ज्यादा बर्बर नहीं थे. वो लिहाज और तरीको को मानने वाले थे. वो ख़ूबसूरती के कद्रदान थे और अच्छी चीजों की कदर करते थे. ट्रेलर में एक दृश्य है जिसमे खिलजी को बड़े असभ्य तरीके से मीट खाते दिखाया गया है. इस बात से इतिहासकार एकदम असहमत है. खिलज़ी असभ्य नहीं था इस तरह. ट्रेलर में खिलज़ी के बाल जरूरत से ज्यादा लम्बे दिखाए गए है. जबकि इतिहासकारो के हिसाब से खिलजी एक कटटर मुस्लिम था और इस्लाम में लम्बे बाल रखना पुरुषो के लिए मना है. खिलजी को एक खूंखार आदमखोर टाइप का दिखाने के लिए भंसाली जी ने उसके तम्बुओ को काला और अंधकूपकारागार सा दिखाया है. पर पर्सियन लोग रंगो के प्रशंशक थे और इतिहास की किताबे भी यही कहती है तब तम्बुओ में भी बेशकीमती चीजों का काम होता है, महलो की ख़ूबसूरती के तो क्या कहने थे. वही एक और चीज उल्टी पुल्टी है ट्रेलर में. खिलजी को फर के बने कपड़ें पहने दिखाया है. जबकि उस समय के सभी मुग़ल शासक सिर्फ रेशमी कपड़ें पहनते थे.
मैं ये नहीं कह रही कि ये फिल्म एकदम बर्बाद है या देखने लायक नहीं होगी. नहीं नहीं, ऐसा एकदम नहीं कहना चाहती मैं. पर मुझे ये इतिहास से रूबरू कराते नहीं दिखती. अपनी भव्य फिल्म से ज्यादा से ज्यादा पैसा बनाने के सपने देखते देखते भंसाली जी ये भूल गए कि पीरियड फिल्मो से ये उम्मीद की जाती है कि वो इतिहास के तथ्यों को मनोरंजक तरीके से दिखाए. इतिहास को ही उलट देना कहा का न्याय है? मैं ये तो नहीं कह सकती कि करनी सेना का विरोध इस फिल्म के लिए सही कदम है. पर मैं इसके बिलकुल खिलाफ हूँ कि अपने देश की फिल्म में एक ऐसे आदमी को गौरवान्वित किआ जाए जिसने भारत देश की गरिमा को नुकसान पहुंचाया. करनी सेना भी पद्मावती और खिलज़ी के बीच किसी भी तरह के रिश्ते को दिखाने के खिलाफ है.
वैसे गौर करने वाले बात ये है कि भंसाली जी ने एक और गलती कर दी, फिल्म का नाम पद्मावती रख दिया. अजी, नाम खिलजी होना चाहिए इस फिल्म का . सब तरफ खिलज़ी ही खिलज़ी है ट्रेलर में तो. बिना बोले ही अलाउद्दीन खिलजी बने रणवीर सिंह ने लोगो का दिल जीत लिया. लड़किया दीवानी हुई जा रही है खिलज़ी की. कोई कह रही है "आई ऍम इन लव विथ ईविल खिलज़ी.. ", तो कोई कह रही है "वो बर्बर चेहरा, वो आँखे..उफ़ मैं तो अभी से ही खिलज़ी की दीवानी हो गई हूँ.." पता नहीं फिल्म रिलीज़ होने के बाद इन लड़कियों का क्या होगा.. ये हीरो की नहीं विलेन की फिल्म जान पड़ती है. जिसमे हीरो की जगह लोग विलेन की तारीफों के पुल बांध रहे है. "ज़माना बदल गया प्यारे.. पुरानी बात नहीं होगी.." सुना था. पर यहाँ बात तो पुरानी ही है मगर ज़रा हटके कहानी है. जिसे क्रिएटिव फ्रीडम के नाम से लोग सराह रहे है.. मूवी आए तो देखते है क्या स्टोरी है.. अभी तो सभी लिफाफा देख कर खत का मज़मून जानने की कोशिश कर रहे है..
Read a post in Hindi after so long and thoroughly enjoyed it. Thank you for letting me know about the movie. Period films these days rarely reflect history. I too had more hopes from this film.
ReplyDeleteLoved your take on the movie trailer. I saw the trailer for the first time on your blog only. Also you make a valid point about movie makers distorting facts to mint money from period movies.
ReplyDeleteInteresting observation and breakdown of the trailer. Also one of the first posts in reading in Hindi. So refreshing.
ReplyDeleteI loved it! Ab jab ye post hindi mai hai to comment bhi hindi mai hona chahiye na. Muje bhi is movie ka trailer dekh k sabse pehle yahi laga tha ki movie Padmavati pe hai ya Khilji pe. Sanjay leela bhansali ki movie hai kuch to bada aur hatkar hoga hi. Par muje apka hindi mai movie trailer review likhna aur usme kamiya nikalna bahut pasand aya.
ReplyDeleteThat’s one hatke insight of the movie. I haven’t watched the trailer yet but ab ye observation padhkar deekhne ka jee chah raha hai 🤔
ReplyDeleteAfter reading your blog seriously lag raha hai film name should be khilji not padmavati Aur trailer main real attraction is ranveer singh character the way he potrayed khilji.. This is the first time I'm reading post on movie trailer and it's very impressive
ReplyDeleteLoved reading your Hindi review of the movie. The trailer looks great. Let's wait and watch the movie.
ReplyDeleteI don't watch TV, but have seen the trailer once. For that larger than life clip, i kept on waiting for a glimpse of Padmavati valour till the end. Now excited to watch it completely as it releases. Great review!
ReplyDeleteWell after reading your review I immediately watched the trailor of Padmavati . Movie looks interesting, typical Bhansali style and as far as keeping up with history goes , I think Bhansali has always made certain compromises in all his movies to make it more interesting to audience . By now everyone should watch it for the entertainment value and not for learning a thing or two about our history
ReplyDeleteFunny but i havnt watched the trailor but now am going to do that. and this was so insightful!
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