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हमेशा चका-चक दिखने की क्या जरुरत है?

ये कुछ इत्तेफाक ही है कि ये पोस्ट भी मेरी मेट्रो यात्रा से प्रभावित है. खैर, मैंने बताया ही है मेट्रो में हमेशा ही मुझे कुछ नया लिखने की प्रेरणा मिल जाती है. तो हुआ यूँ कि पिछले दिनों मैं मेट्रो में ही कही जा रही थी. नवरात्र के दिन थे और दोपहर का समय. लेडीज कोच में काफी लड़कियाँ मुझे सूट और साड़ी में दिखी. अच्छा लगा कि अभी भी लोग समय और खास दिनों के हिसाब से पहनावे में बदलाव कर रहे है. पर मेरा ध्यान एक ऐसी लड़की पर था जो आराम से मेकअप कर रही थी. जी, टच अप कहते है जिसे. खुद को एक छोटे से शीशे में देखते हुए वो पूरा समय अपने आप को सवारती रही. वैसे तो मुझे कोई जरुरत ही नहीं लग रही थी टच अप की उसके चेहरे पर जो पहले से साफ़ और सुन्दर था. पर फिर भी ना जाने क्यों वो उस पहले से सुन्दर चेहरे पर और कुछ ठीक करने में लगी थी!!

उसे देखते-देखते मेरा ध्यान अपने ऊपर गया. सामने मेट्रो के खिड़की में मेरा प्रतिबिम्ब दिख रहा था. चिपके बाल, हाथो में बस एक घड़ी, नाखूनों में थोड़ी छूटी हुई नेल पेंट, बिना मैचिंग की चप्पल और एक बेडौल काया. कही से भी मैं सुंदरता की लाइन में नहीं खड़ी दिखाई दी. मेरे मुँह पर अजीब सी उदासी आ गई. मैं सोचने लगी कि मैंने अपने ऊपर ध्यान देना बंद कर दिया है. इसी वजह से मैं ऐसे दिख रही थी. मेरे बैग में एक लिपस्टिक भी नहीं थी कि उसे लगा कर ही चेहरे में कुछ बदलाव कर पाती. खुद की अपने सामने टच अप करती लड़की से तुलना ने मुझे थोड़ा सा दुखी भी कर दिया. मैं उन दिनों को याद करने लगी जब मुझसे लोग पूछते कि आप क्या लगाती हो फेस पर, गज़ब की चमक है आपके चेहरे पर!

इन्ही सब उधेड़-बुन के बीच एक स्टेशन आया और फिर लेडीज कोच में मैंने एक ऐसी हस्ती को देखा जिसने मेरी सारी चिंता, सारा रोष दूर कर दिया. लगभग २५ साल की लड़की होगी वो, कंधे पर एक थैला था पुराना सा, हाथ में एक किताब थी और चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान थी. बाल भी किसी तरह रबर बैंड में बंधे थे पर उसके हाव भाव देख कर लग रहा था कि उसे दुनिया की चिंता जरा भी नहीं थी. उसे देख मुझे सोनम कपूर का पोस्ट याद आ गया. हमेशा अच्छा दिखने की चाहत बस एक मिथ्या है. सोनम की जितनी तारीफ करूँ कम है.

मैंने अपने जीवन में कई महिलाएं देखीं जिनमें ना तरीका है और ना तरीका जानने का वक़्त.  ना जिनके पास अक्ल है और ना ही संसाधन. जिन्हे परवाह  नहीं है कि सफेद ब्लाउज़ के नीचे काला पहनने से वह झलकेगा. जिनके सूती सफेद/मटमैले स्ट्रैप, ब्लाउज़ या कुर्ते से अलग थलग होकर कंधो से झाँकने लगते हैं. दफ्तरों को जैसे-तैसे निकलीं ये महिलाएं एकाध बार वॉशरूम जाती हैं तो बस अपने शरीर की प्राकतिक क्रिया को निपटा कर वो तुरंत बाहर आ जाती है. ध्यान चला जाए तो जहाँ है वही खड़े स्ट्रैप्स को वापस दुलरा कर भीतर कर देती  हैं. कपड़े के कंधे में भीतर जो इन स्ट्रैप्स को कण्ट्रोल में रखने की पट्टी पर से चुटपुटिया बटन टूट गया होता है, दोबारा सिलने की मोहलत नहीं मिलती उन्हें.  नए दुपट्टों के सिरों पर पीको नहीं मिलती इनके. कितने सारे वॉर्ड्रोब मॉलफंगसन सेफ़्टी पिंस से बचाती हैं ये महिलाये.

पर ऐसी महिलाओ की खास बात होती है उनके चेहरे की मुस्कान. वो बाकी की सारी कमियों को छोटा कर देती है. वो बड़े बड़े AC ऑफिसो में काम नहीं करती, बल्कि छोटे छोटे कामो को करने के लिए लम्बा सफर करती है. सुबह जाते समय भी वो वैसे ही चहकती है जैसे की शाम को वापस आते समय. जबकि शायद घर पर उन्हें बाहर से ज्यादा काम करना होता है. पर फिर भी उन्हें सिर्फ खुश रहने से मतलब है. तो इसी सब के बीच मुझे भी समझ  आ गया कि हमेशा चका चक दिखने की क्या जरुरत है? कभी ऐसे भी मस्त रहना चाहिए. जब आपको दूसरो की परवाह ना हो कि वो आपको आपकी फैली लिपस्टिक, बिखरे कपड़ो, बिना मैचिंग की चप्पलो या चिपके बालों से परखने की कोशिश करेंगे. 




इस दुनिया की कोई भी महिला हमेशा चकाचक नहीं रह सकती. पुरुष भी नहीं. इसलिए जब किसी विज्ञापन या फिल्म से पहले एक चेतावनी लिखी आती है कि हीरो के स्टंट्स की नक़ल करने की कोशिश ना करें क्योंकि वो स्पेशल स्टंट आर्टिस्ट करते हैं तो साथ ही एक चेतावनी यह भी जारी करनी चाहिए कि जब भी आप किसी हीरोईन जैसी सुन्दर लड़की/महिला को देखे तो उसके जैसे दिखने की कोशिश न करें क्योंकि उसे भी ट्रेनर, ब्यूटिशियन, मेकअप के ज़रिए वैसा बनाया गया हो सकता है और हां थोड़ी थोड़ी देर के टच अप  से भी. सुन्दर मन से रहे, खुश रहे और दूसरो को भी खुश रखने की कोशिश करे. दुनिआ की परवाह ना करके अपनी कीजिये. आप हमेशा चकाचक नहीं रह सकती पर खुश हमेशा रह सकती है बिना टच अप के भी. 

(पहले प्रकाशित यहाँ  https://hindi.momspresso.com/parenting/cooperation-communication-and-affection-thee-keys-of-parenting/article/hamesha-chakachaka-dikhane-ki-kya-jarurata-hai)
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