"आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?" ये सवाल पता नहीं कब से लोग बच्चो से पूछते चले आ रहे हैं.. मैं जब छोटी थी तो मैं पहले डॉक्टर बनना चाहती थी. पर एक दिन जब गलती से मेरे हाथो एक मेढक दरवाजे के नीचे दब गया तो मुझे लगा मैं डॉक्टर नहीं बन पाऊँगी. मैं तो किसी जीव पर कोई स्टडी ही नहीं कर पाऊँगी. मुझे बड़ा दुःख हुआ था मेढक के चोटिल होने पर. फिर मैंने सोचा मैं टीचर बन सकती हूँ तो उसके लिए सपने देखने लगी. जब ग्रेजुएशन कर लिया तो मेरे पापा ने बोला किसी प्रोफेशनल कोर्स के लिए टेस्ट दो. उस समय प्रोफेशनल कोर्स की बड़ी अहमियत थी. इत्तेफाक से मेरा सेलेक्शन भी अच्छी रैंक से हो गया और मेरा टीचर बनने का सपना वही खत्म हो गया. अब मैं सॉफ्टवेयर सेक्टर में काम करती हूँ और मुझे करीब करीब १० साल होने जा रहे हैं यहाँ..
धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि इस सवाल का जवाब समय के साथ बदलता रहता हैं. बच्चा क्या बनेगा आगे चल कर, इस सवाल का जवाब पेरेंट्स अलग देते हैं और बच्चे अलगे. अगर मैं पेरेंट्स के परिपेक्ष में इस बारे में सोचू तो मैं चाहूंगी कि मेरा बेटा सबसे पहले एक अच्छा इन्सान बने. फिर चाहे वो डॉक्टर, इंजीनियर या टीचर बने, सब जगह ही सफलता मिलेगी उसे. माता-पिता अपने बच्चो से बड़ी उम्मीदे रखते हैं कि वो आगे चल कर कुछ ऐसा करेंगे जिससे उन्हें अपनी परवरिश पर गर्व महसूस हो. वो हमेशा यही चाहते हैं कि बच्चे सफल होकर एक अच्छा जीवन जिए. मुझे भी अपने बेटे से कई उम्मीदे हैं. मैं चाहती हूँ कि वो सकारात्मक सोच के साथ बड़ा हो और आगे चल कर अपने आस-पास कुछ बदलाव ला सके.
लोग हमेशा से यही कहते हैं कि हमारा समाज पुरुष प्रधान हैं. कई लोग इसे ही सबसे बड़ा कारण मानते हैं महिलाओ का स्तर कम अच्छा होने का. मेरी सोंच थोड़ी अलग हैं. अगर सदियों से ये समाज पुरुष प्रधान रहा हैं तो हम उसे बराबरी की लड़ाई से दिनों रात में नहीं बदल सकते. जब प्रकति ने ही हमे अलग बनाया हैं तो हम बराबरी की लड़ाई क्यों लड़े? इससे बेहतर होगा कि हम अपने समाज के लोगो की सोच को अच्छा करने के प्रयास करे. इसलिए मैं उम्मीद करती हूँ कि मेरा बेटा आगे चल कर इस बात को समझ सकेगा कि प्रकति के संतुलन में सबकी अपनी जगह हैं. वो चाहे पुरुष हो या महिलाए, पशु या पौधे.. जैसे ही संतुलन बिगड़ा, प्रकति साथ देना बंद कर देती हैं. जब तक ये समाज पुरुष प्रधान रहे, जरूरत हैं ऐसे पुरूषों की जो दूसरो के बारे में भी सोचें. जो बिना किसी जाति, धर्म या रंग के भेदभाव के लोगो को अपनाये. मैं उम्मीद करती हूँ कि मेरा बेटा लोगो को दबा कर खुद आगे बढ़ने के बजाय सबको साथ में लेकर चलने का प्रयास करेगा.
मैं ये भी आशा करती हूँ कि मेरा बेटा आगे चल कर गलत और सही में अंतर करना सीख पाए. वो गलत होता देख कर उसके खिलाफ आवाज उठा पाए. हमारा समाज इसलिए ही ज्यादा बिगड़ रहा हैं क्यूकि हमने दूसरो के दर्द और समस्याओ को देखना और समझना बंद कर दिया हैं. हम खुद तक ही सीमित रहना चाहते हैं. पर मैं उम्मीद करती हूँ कि मैं ये अपने बेटे को समझा पाउ कि दूसरो के लिए आदर और प्रेम ही असली मानवता हैं.
इसके साथ-साथ मैं उम्मीद करती हूँ कि वो ये समझ पाएगा कि परिवार सबसे बड़ा खज़ाना हैं किसी भी इन्सान का. घर के लोग ही उसके अच्छे और बुरे दोनों समय में एक सा व्यवहार करते हैं. मैंने टेड टॉक के किसी वीडियो में सुना था कि किसी इन्सान के सुखी जीवन में रिश्तो का बड़ा हाथ होता हैं. अगर परिवार के लोग और मित्र साथ हो तो कोई भी एक अच्छा खुशहाल जीवन जी सकता हैं. तो मैं ये कोशिश करुँगी कि मेरा बेटा अपने परिवार से हमेशा जुड़ा रहे..
आपको लग रहा होगा कि मैंने हर जगह उम्मीद या कोशिश जैसे शब्द क्यों लिखे हैं..? असल में बड़ा होकर कोई क्या बनेगा ये उस पर भी निर्भर करता हैं. कोई माँ बाप नहीं चाहते कि उसका बच्चा आगे चल कर कोई जुर्म करे या किसी को परेशान करे. पर कुछ बच्चे ऐसा करते हैं. तो एक माँ होने के नाते मैं पूरी कोशिश करुँगी कि शुरुवात से ही अपने बेटे को अच्छा इन्सान बनाने का लक्ष्य रखूँ. यही सबसे बड़ा ध्येय होता हैं हर माता पिता का. और ये मेरा विश्वास हैं की वो आगे चल कर मेरी उम्मीदों पर खरा उतरेगा..फिर मेरा बेटा बड़ा होकर कही भी करियर बनाए तो मुझे समस्या नहीं रहेगी. अच्छे लोग जहा भी जाए, अच्छा ही करते हैं.. वैसे जब मैंने अपने ३ साल के बेटे से पूछा "आप बड़े होकर क्या बनना चाहते हो?" उसका जवाब था.."साइकिल चलाऊंगा खूब.."
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