आम को फलों का राजा कहा जाता हैं और गर्मियों के मौसम में अगर कुछ अच्छा होता हैं तो वो बस आम हैं. मैं UP के उस हिस्से से आती हूँ जहाँ आम की कई किस्मे मिलती हैं और पूरी दुनिया में मशहूर हैं. लखनऊ के आस पास की मिटटी आम के लिए एकदम खास हैं. बाग़ तो हैं ही आम के यहाँ, लोग घरो में भी आम ही ज्यादा लगाते हैं. बचपन में मेरी गर्मी की छुट्टियाँ भी आम के भरपूर मज़े लेने में जाती थी. गाओं में खूब सारे बाग़ थे आम के. सुबह-शाम वहां से आम आते थे घर, पर जो मज़ा खुद तोड़ कर खाने में था वो किसी और के लाए आम में कहा था. हम सुबह सुबह जाते थे बाग़ और जहाँ तक नज़र जाती आम ही आम दिखाई देते. पेड़ लदे रहते आम से और मानो कह रहे हो कि "आओ देखो ये आम कितने मीठे हैं.."
वैसे आम बस आम नहीं रह गया हैं. कभी वह पार्टी बन कर खास हो जाता है तो कभी नेता बन कर, पर मारिये गोली इन नेताओ और पार्टी की बातो को, हम तो बस अपने फलो के राजा की बात करते हैं. आम की कई किस्मे हैं हमारे तरफ UP में लेकिन एक खास किस्म की बात आज कल खूब हो रही हैं "योगी आम". जी हां, ये आम की एक किस्म हैं जो अभी कुछ दिनों पहले ही बनाई गई हैं. दरअसल ‘योगी’ आम की एक नई प्रजाति है जिसे मलीहाबाद के आम इंजीनियर और मैंगोमैन हाजी कलीमुल्ला खान ने UP मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर विकसित किया है. कलीमुल्ला आम की कई किस्मे विकसित कर चुके हैं अब तक. वो १९५७ से आम की बागवानी से जुड़े हैं. आम उनका दीन है, दीवानगी है, इबादत है, सपना है, जुनून है, दिल की धड़कन हैं, दिमाग की हलचल हैं और उनकी जिंदगी हैं. उनकी यही दीवानगी उन्हें पद्मश्री और उत्तर प्रदेश सरकार से उद्यान पंडित का खिताब दिलवा चुकी हैं.
कलीमुल्ला ७४ साल के हैं और उनकी उम्र उनकी आम से दोस्ती को जरा भी कम नहीं कर पाई हैं. वो लखनऊ के करीब के मलीहाबाद कस्बे में रहते हैं. अपनी नर्सरी में एक पेड़ पर कलमें बांध कर ३०० से ज्यादा किस्म के आम पैदा करके बना उनका अनूठा रिकार्ड आज उनके ही दूसरे कारनामों में कहीं खो चुका है. वो इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर "नमो आम" भी उगा चुके हैं. वो कहते हैं "जिस तरह नरेंद्र मोदी दुनिया में भाईचारे की मिठास बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, उसी तरह यह नमो आम भी जायके की दुनिया में सबका प्यारा बन सकता है." और तो और वो सचिन तेंदुलकर और पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के नामों पर भी आम की नस्लें बना चुके हैं. कलीमुल्ला बताते हैं की ८० के दशक में सऊदी अरब के एक शेख ने उन्हे उनके वजन के बराबर सोना देने के एवज में वहीं रहकर आम के बागान लगाने का ऑफर दिया था. पर उन्होंने अपने वतन के प्यार के आगे वो ठुकरा दिया.
वैसे अभी ‘योगी’ आम के स्वाद के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि यह अभी पका नहीं. लेकिन कलीमुल्ला को उम्मीद है कि यह बहुत ही रसीला और जायकेदार होगा. अब ऐसे दीवानगी आम के लिए तो सच में तारीफ के काबिल हैं. लोग तो बस आम खाने के शौक़ीन होते हैं पर कलीमुल्ला खान तो असल में ‘आम इंसान’ हैं जो खाने के साथ साथ उसे आगे भी ले जा रहे हैं..
आम के दीवाने और भी हैं जो बस खाने की बाते नहीं करते उन पर कविता लिख देते हैं.. गुलज़ार ने लिखा हैं..
मोड़ पे देखा है वह बूढ़ा-सा इक पेड़ कभी?
मेरा वाकिफ है, बहुत सालों से मैं उसे जानता हूं..
जब मैं छोटा था, तो इक आम उडत्राने के लिए..
परली दीवार से कंधे पर चढ़ा था उसके..
जाने दुखती हुई किस साख से जा पांव लगा ..
ढाड से फेंक दिया था मुझे नीचे उसने..
मैंने खुन्नस में बहुत फेेंके थे पत्थर उस पर..
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