आज का लेख एक ऐसी कलाकार के नाम है जो महाभारत की जटिल कथा और इसके तमाम पात्रों को अपने चेहरे से बखूबी दर्शाती है. तीजनबाई जी . मैंने बचपन में पहली बार जब तीजनबाई जी की प्रस्तुति सुनी तभी से वो मेरे मन में बस गई. तीजनबाई जी छत्तीसगढ़ की लोकगायन शैली पंडवानी की गायिका हैं. जो लोग पंडवानी के बारे में नहीं जानते है उन्हें मैं ये बताना चाहती हूँ कि ये सिर्फ गायन की शैली नहीं है, ये गायन और नाट्य दोनों की मिलीजुली शैली है. तीजनबाई जी इस शैली को अपनाने वाली पहली महिला है. इससे पहले पुरुष ही इस तरह से अपनी बात रखते थे.
तीजनबाई जी बताती है कि पंडवानी का मतलब है 'पांडवो की वानी', जिसे छत्तीसगढ़ के गाओं में गाया और सुनाया जाता है. तीजनबाई जी पंडवानी में पूरी महाभारत को अपनी आवाज में गाती है और साथ ही साथ अपने एकतारे के साथ भाव विभोर नाट्य प्रस्तुति देती है. वे स्वयं नायक भी होती हैं, नायिका भी, गायिका भी, निर्देशिका भी और अभिनेता भी. वो संवादों की लेखिका (मौखिक) भी हैं और उनके अनुकूल बनी पात्र भी बन जाती है. ये कला उन्होंने अपने नाना से सीखी. उनका एकतारा, जिसके साथ वो महाभारत का गान करती है, वो भी एक अलग पहचान रखता है. वो कभी कृष्ण की बासुरी तो कभी भीम की गदा बन जाता है. कभी तलवार तो कभी तीर तरकश बन जाता है. तीजनबाई जी अपने एकतारे के साथ ही अलग-अलग रूप लेती है. कभी भीम बनकर जोश से भरे छंद सुनाती है तो कभी द्रौपदी की व्यथा को दुखित मन से रखती है. महाभारत का एक-एक चरित्र वो खुद ही निभाती है.तीजनबाई जी के साथी कोरस में गाने वाले साजिंदे अपना एक विशेष महत्व रखते हैं. युद्ध की गर्जना और कोलाहल को सजीव बनाने में वे तीजनबाई के बहुत बड़े पूरक होते हैं.
तीजनबाई जी एक मशहूर कलाकार है जो विदेशो में भी अपने अनगिनत कार्यक्रम कर चुकी है. वो पद्म श्री और पद्म भूषण सम्मानों से अभिभूषित है. 61 साल की तीजनबाई जी आज एक अंतरराष्ट्रीय नाम है. पर जैसा की हमेशा होता है, एक छोटी सी जगह से आने वाली तीजनबाई जी को यहाँ तक आने में काफी कुछ झेलना और देखना पड़ा. लड़की होने की वजह से उनके गाना गाने को लोग पसंद नहीं करते थे. उनका ध्यान पंडवानी से हटाने के लिए उनकी माँ ने बहुत कुछ किया, उन्हें खाना नहीं देती थी, घर में बंद रखती थी पर तीजनबाई को कोई रोक नहीं पाया. वो कहती है कि "तीजनबाई जी नहीं पाती अगर वो पंडवानी नहीं गाती."
वो कहती हैं पहले की अपेक्षा अब सरकार और मीडिया ज्यादा से ज्यादा लोक कलाकारों को सामने ला रहे है. वो मानती है कि अपनी परंपरा बचाना, जीवन बचाने जैसा है. जो कलाएं गाओं तक सिमट गई है, वो पूरी दुनिआ में सुनी और देखी जाए इसके लिए वो काम कर रही हैं. पर उनकी सबसे अच्छी बात है कि वो बड़ी ही सीधी और हमेशा मुस्कुराने वाली शख़्सियत है. अमिताभ बच्चन को लम्बू के नाम से बुलाने वाली, तीजनबाई जी कहती है कि पुराने दिनों को कभी भूलना नहीं चाहिए. पुराना समय ही नए समय का महत्व बताता है. आज की अपनी प्रसिद्धि के साथ वो उस समय को याद करती रहती हैं जब उन्हें खाने में जली रोटी मिलती थी, जब उन्हें गांव से निकाल दिया गया था क्युकी उन्होंने गाना नहीं छोड़ा था. वो सच में एक मिसाल है कि चाहे कितनी भी परेशानियाँ आए, अपने सपनो को पूरा करना ही जीवन है.
तीजनबाई जी बताती है कि पंडवानी का मतलब है 'पांडवो की वानी', जिसे छत्तीसगढ़ के गाओं में गाया और सुनाया जाता है. तीजनबाई जी पंडवानी में पूरी महाभारत को अपनी आवाज में गाती है और साथ ही साथ अपने एकतारे के साथ भाव विभोर नाट्य प्रस्तुति देती है. वे स्वयं नायक भी होती हैं, नायिका भी, गायिका भी, निर्देशिका भी और अभिनेता भी. वो संवादों की लेखिका (मौखिक) भी हैं और उनके अनुकूल बनी पात्र भी बन जाती है. ये कला उन्होंने अपने नाना से सीखी. उनका एकतारा, जिसके साथ वो महाभारत का गान करती है, वो भी एक अलग पहचान रखता है. वो कभी कृष्ण की बासुरी तो कभी भीम की गदा बन जाता है. कभी तलवार तो कभी तीर तरकश बन जाता है. तीजनबाई जी अपने एकतारे के साथ ही अलग-अलग रूप लेती है. कभी भीम बनकर जोश से भरे छंद सुनाती है तो कभी द्रौपदी की व्यथा को दुखित मन से रखती है. महाभारत का एक-एक चरित्र वो खुद ही निभाती है.तीजनबाई जी के साथी कोरस में गाने वाले साजिंदे अपना एक विशेष महत्व रखते हैं. युद्ध की गर्जना और कोलाहल को सजीव बनाने में वे तीजनबाई के बहुत बड़े पूरक होते हैं.
तीजनबाई जी एक मशहूर कलाकार है जो विदेशो में भी अपने अनगिनत कार्यक्रम कर चुकी है. वो पद्म श्री और पद्म भूषण सम्मानों से अभिभूषित है. 61 साल की तीजनबाई जी आज एक अंतरराष्ट्रीय नाम है. पर जैसा की हमेशा होता है, एक छोटी सी जगह से आने वाली तीजनबाई जी को यहाँ तक आने में काफी कुछ झेलना और देखना पड़ा. लड़की होने की वजह से उनके गाना गाने को लोग पसंद नहीं करते थे. उनका ध्यान पंडवानी से हटाने के लिए उनकी माँ ने बहुत कुछ किया, उन्हें खाना नहीं देती थी, घर में बंद रखती थी पर तीजनबाई को कोई रोक नहीं पाया. वो कहती है कि "तीजनबाई जी नहीं पाती अगर वो पंडवानी नहीं गाती."
वो कहती हैं पहले की अपेक्षा अब सरकार और मीडिया ज्यादा से ज्यादा लोक कलाकारों को सामने ला रहे है. वो मानती है कि अपनी परंपरा बचाना, जीवन बचाने जैसा है. जो कलाएं गाओं तक सिमट गई है, वो पूरी दुनिआ में सुनी और देखी जाए इसके लिए वो काम कर रही हैं. पर उनकी सबसे अच्छी बात है कि वो बड़ी ही सीधी और हमेशा मुस्कुराने वाली शख़्सियत है. अमिताभ बच्चन को लम्बू के नाम से बुलाने वाली, तीजनबाई जी कहती है कि पुराने दिनों को कभी भूलना नहीं चाहिए. पुराना समय ही नए समय का महत्व बताता है. आज की अपनी प्रसिद्धि के साथ वो उस समय को याद करती रहती हैं जब उन्हें खाने में जली रोटी मिलती थी, जब उन्हें गांव से निकाल दिया गया था क्युकी उन्होंने गाना नहीं छोड़ा था. वो सच में एक मिसाल है कि चाहे कितनी भी परेशानियाँ आए, अपने सपनो को पूरा करना ही जीवन है.
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