गर्मियों का मौसम आते ही आम के किस्से शुरू हो जाते है घरो में. कितने किस्म के आम आते है? कौन से आम ज्यादा मीठे होते है? और कौन कितने आम खा सकता है? ऐसी बातें रोज होने लगती है, कम से कम ईस्ट UP में ऐसा ही है. मैं भी वही से आती हूँ और बचपन की यादो में आम काफी जगह है. अगर आप अवध के किसी भी बच्चे से पूछे तो वो आम को ही अपना पसंदीदा फल बताएगा. वहाँ बच्चे और बड़े सब आम का बेसब्री से इंतज़ार करते है हर साल. और जैसे ही बाजार में आम दिखे बस आ जाते है खरीद कर, ये जानते हुए भी कि शुरुवात के आम खट्टे होते है.पर मेरा किस्सा थोड़ा अलग है. मुझे आम से ज्यादा अमरुद पसंद है. एक बार ऐसे ही घर पर बात हो रही थी और जैसे ही मैंने कहा मेरा पसंदीदा फल अमरुद है, किसी ने कहा "अमरुद भी कोई फल है, फलो का राजा तो बस आम है आम.." मुझे बड़ा गुस्सा आया. सबकी अपनी पसंद है भाई , क्या कमी है अमरुद में?
बचपन में मेरा घर कॉलोनी की जिस गली में था वो अमरुद वाली गली के नाम से जानी जाती थी. मेरे घर के सामने के सारे घरो में एक-एक अमरुद का पेड़ था, आगे के आँगन में. पेड़ की पत्तियों से कूड़ा बड़ा होता है तो मेरी माँ की इच्छानुसार हमारे घर के आगे वाले आँगन में बस फूल लगे थे. पर जब सामने के पेड़ो में अमरुद लगते तो मन में बड़ी टीस होती. गर्मियों में फलने वाले थे वो पेड़. गर्मियों की छुट्टियों में दोपहर का टाइम उन अमरूदों को दूर से देखने में जाता था. क्या चमकते थे अमरुद धूप में! चोरी से तोड़ने की हिम्मत नहीं होती थी तो मैं इंतज़ार करती थी कि कब सामने वाले के यहाँ से अमरुद आएंगे. पर इतनी आसानी से नहीं आते थे अमरुद सामने वालो के यहाँ से. जब उनके घर के लोग जम कर अमरुद के मजे ले लेते थे और फिर उनके खाने की इच्छा खतम होने लगती थी तब आंटी जी एक झोले में अमरुद भेजती थी क्यूकी पेड़ तो लदे ही रहते थे अमरूदों से.
अच्छा तो लगता था कि अमरुद आ जाते थे पर ये भी लगता था कि अब क्यों दिए, पहले क्यों नहीं? फेंक नहीं पाई तो बाट दिए मोहल्ले में! चाहे ऐसा सच में न हो पर मेरा बाल मन ऐसा ही सोचता था. फिर एक दिन मुझसे रहा नहीं गया. मैंने भी अपने घर के आगे वाले आँगन में एक पौधा लगा दिया अमरुद का. रोज पानी देती उसे. खाद भी डाली ताकि जल्दी बड़ा हो जाए. किसी बच्चे से सुना की अगर पेड़ की जड़ में एक सिक्का गाड दो तो पेड़ जल्दी बढ़ते है तो बिना सोचे वो भी कर दिया. देखते ही देखते मेरा अमरुद का पेड़ बड़ा हो गया. फल भी आने लगे और सबसे अच्छी बात ये थी वो बारहमासी था. सिर्फ गर्मियों में फल देने वाला नहीं. अब क्या पूछने थे मेरे. अपने लगाए हुए पेड़ के अमरुद, वाह वाह! रोज स्कूल से आकर मेरा काम ही था अमरुद ताड़ना अपने पेड़ के. फिर डंडे से तोडना और माँ की बनाई धनिया की चटनी से खाना, ये मज़ा आम में कहा था. कम से कम मेरे लिए तो ऐसा ही था. अमरुद आम से बढ़ कर था और आज भी है.
आज भी जब कोई मज़ाक करता है कि अमरुद में ऐसा क्या है तो उसे ये किस्सा सुना देती हूँ. और फिर रामदेव जी की बताई अमरुद की खूबियाँ. अमरुद बस एक फल नहीं है, वो एक बड़ी अच्छी औषधि है जिसका फल, पत्ते, लकड़ी और जड़ सब बड़े काम के है और आम के जैसे अमरुद का कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं है. अब भला रामदेव जी को कोई गलत कह सकता है, वो भी आज कल! कोई भी नहीं..सब मान लेते है अमरुद अच्छा फल है चाहे फलो का राजा आम ही क्यों न हो!
बचपन में मेरा घर कॉलोनी की जिस गली में था वो अमरुद वाली गली के नाम से जानी जाती थी. मेरे घर के सामने के सारे घरो में एक-एक अमरुद का पेड़ था, आगे के आँगन में. पेड़ की पत्तियों से कूड़ा बड़ा होता है तो मेरी माँ की इच्छानुसार हमारे घर के आगे वाले आँगन में बस फूल लगे थे. पर जब सामने के पेड़ो में अमरुद लगते तो मन में बड़ी टीस होती. गर्मियों में फलने वाले थे वो पेड़. गर्मियों की छुट्टियों में दोपहर का टाइम उन अमरूदों को दूर से देखने में जाता था. क्या चमकते थे अमरुद धूप में! चोरी से तोड़ने की हिम्मत नहीं होती थी तो मैं इंतज़ार करती थी कि कब सामने वाले के यहाँ से अमरुद आएंगे. पर इतनी आसानी से नहीं आते थे अमरुद सामने वालो के यहाँ से. जब उनके घर के लोग जम कर अमरुद के मजे ले लेते थे और फिर उनके खाने की इच्छा खतम होने लगती थी तब आंटी जी एक झोले में अमरुद भेजती थी क्यूकी पेड़ तो लदे ही रहते थे अमरूदों से.
अच्छा तो लगता था कि अमरुद आ जाते थे पर ये भी लगता था कि अब क्यों दिए, पहले क्यों नहीं? फेंक नहीं पाई तो बाट दिए मोहल्ले में! चाहे ऐसा सच में न हो पर मेरा बाल मन ऐसा ही सोचता था. फिर एक दिन मुझसे रहा नहीं गया. मैंने भी अपने घर के आगे वाले आँगन में एक पौधा लगा दिया अमरुद का. रोज पानी देती उसे. खाद भी डाली ताकि जल्दी बड़ा हो जाए. किसी बच्चे से सुना की अगर पेड़ की जड़ में एक सिक्का गाड दो तो पेड़ जल्दी बढ़ते है तो बिना सोचे वो भी कर दिया. देखते ही देखते मेरा अमरुद का पेड़ बड़ा हो गया. फल भी आने लगे और सबसे अच्छी बात ये थी वो बारहमासी था. सिर्फ गर्मियों में फल देने वाला नहीं. अब क्या पूछने थे मेरे. अपने लगाए हुए पेड़ के अमरुद, वाह वाह! रोज स्कूल से आकर मेरा काम ही था अमरुद ताड़ना अपने पेड़ के. फिर डंडे से तोडना और माँ की बनाई धनिया की चटनी से खाना, ये मज़ा आम में कहा था. कम से कम मेरे लिए तो ऐसा ही था. अमरुद आम से बढ़ कर था और आज भी है.
आज भी जब कोई मज़ाक करता है कि अमरुद में ऐसा क्या है तो उसे ये किस्सा सुना देती हूँ. और फिर रामदेव जी की बताई अमरुद की खूबियाँ. अमरुद बस एक फल नहीं है, वो एक बड़ी अच्छी औषधि है जिसका फल, पत्ते, लकड़ी और जड़ सब बड़े काम के है और आम के जैसे अमरुद का कोई साइड इफ़ेक्ट भी नहीं है. अब भला रामदेव जी को कोई गलत कह सकता है, वो भी आज कल! कोई भी नहीं..सब मान लेते है अमरुद अच्छा फल है चाहे फलो का राजा आम ही क्यों न हो!
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